'''महाबोधि विहार''' या '''महाबोधि मन्दिर''', [[बोध गया]] स्थित प्रसिद्ध [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] [[विहार]] है। [[यूनेस्को]] ने इसे [[विश्व धरोहर]] घोषित किया है।यह विहार उसी स्थान पर खड़ा है जहाँ [[गौतम बुद्ध]] ने ईसा पूर्व 6वी शताब्धिं में ज्ञान प्राप्त किया था।
== महाबोधि मंदिरविहार ==
यह [[विहार]] मुख्य [[विहार]] या महाबोधि विहार के नाम से भी जाना जाता है। इस विहार की बनावट [[सम्राट अशोक]] द्वारा स्थापित [[स्तूप]] के समान हे।है। इस मंदिर[[विहार]] में [[ गौतम बुद्ध]] की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचिलत है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान [[ निर्वाणबुद्धत्व]] (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। मंदिरविहार के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही [[बोधगया ]] में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस मंदिरविहार परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहां बौद्ध भिक्षु[[भिक्खु]] ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिरविहार प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं। ▼
यह मंदिर मुख्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की बनावट [[सम्राट अशोक]] द्वारा
▲स्थापित [[स्तूप]] के समान हे। इस मंदिर में [[बुद्ध]] की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचिलत है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहां बुद्ध को ज्ञान [[निर्वाण]] (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहां बौद्ध भिक्षु ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं।
इस मंदिरविहार परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद सात सप्ताह व्यतीत किया था। जातक कथाओं में उल्लेखित [[बोधि वृक्ष]] भी यहां है। यह एक विशाल [[पीपल]] का वृक्ष है जो मुख्य मंदिरविहार के पीछे स्थित है। कहा जाता बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में जो [[बोधि वृक्ष]] वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढी है। मंदिरविहार समूह में सुबह के समय घण्टों की आवाज मन को एक अजीब सी [[शांति]] प्रदान करती है।
मुख्य मंदिरविहार के पीछे बुद्ध की लाल बलुए पत्थर की 7 फीट ऊंची एक मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति विजरासन मुद्रा में है। इस मूर्त्ति के चारों ओर विभिन्न रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्त्ति को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसी स्थान पर [[सम्राट अशोक]] ने हीरों से बना राजसिहांसन लगवाया था और इसे [[पृथ्वी]] का नाभि केंद्र कहा था। इस मूर्त्ति की आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पदचिन्ह बने हुए हैं। बुद्ध के इन पदचिन्हों को [[धर्मचक्र]] प्रर्वतन का प्रतीक माना जाता है।
[[गौतम बुद्ध|बुद्ध]] ने ज्ञान प्राप्ित के बाद दूसरा सप्ताह इसी [[बोधि वृक्ष]] के आगे खड़ा अवस्था में बिताया था। यहां पर बुद्ध की इस अवस्था में एक मूर्त्ति बनी हुई है। इस मूर्त्ति को अनिमेश लोचन कहा जाता है। मुख्य मंदिरविहार के उत्तर पूर्व में अनिमेश लोचन [[चैत्य]] बना हुआ है।
मुख्य मंदिरविहार का उत्तरी भाग चंकामाना नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद तीसरा सप्ताह व्यतीत किया था। अब यहां पर काले पत्थर का [[कमल]] का फूल बना हुआ है जो बुद्ध का प्रतीक माना जाता है।
महाबोधि मंदिरविहार के उत्तर पश्िचम भाग में एक छतविहीन भग्नावशेष है जो रत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। दन्तकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्यान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्हीं रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा यहां लगे अपने पताके में किया है।
माना जाता है कि बुद्ध ने मुख्य मंदिरविहार के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपाला-निग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ित के बाद पांचवा सप्ताह व्यतीत किया था। बुद्ध ने छठा सप्ताह महाबोधि मंदिरविहार के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा क्षील के नजदीक व्यतीत किया था। यह क्षील चारों तरफ से वृक्षों से घिरा हुआ है। इस क्षील के मध्य में बुद्ध की मूर्त्ति स्थापित है। इस मूर्त्ति में एक विशाल सांप बुद्ध की रक्षा कर रहा है। इस मूर्त्ति के संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार बुद्ध प्रार्थना में इतने तल्लीन थे कि उन्हें आंधी आने का ध्यान नहीं रहा। बुद्ध जब मूसलाधार बारिश में फंस गए तो सांपों का राजा मूचालिंडा अपने निवास से बाहर आया और बुद्ध की रक्षा की।
इस मंदिरविहार परिसर के दक्षिण-पूर्व में राजयातना वृक्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद अपना सांतवा सप्ताह इसी वृक्ष के नीचे व्यतीत किया था। यहीं बुद्ध दो बर्मी (बर्मा का निवासी) व्यापारियों से मिले थे। इन व्यापारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की। इन प्रार्थना के रूप में बुद्धमं शरणमशरणम् गच्छामि (मैं अपनेबुद्ध को भगवान बुद्ध कोशरण सौंपताजाता हू) का उच्चारण किया। इसी के बाद से यह प्रार्थना प्रसिद्ध हो गई।
=== तिब्बतियन मठ ===
(महाबोधि मंदिरविहार के पश्िचम में पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्थित) जोकि बोधगया का सबसे बड़ा और पुराना [[मठ]] है 1934 ई. में बनाया गया था। बर्मी विहार (गया-बोधगया रोड पर निरंजना नदी के तट पर स्थित) 1936 ई. में बना था। इस विहार में दो प्रार्थना कक्ष है। इसके अलावा इसमें बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा भी है। इससे सटा हुआ ही थाई मठ है (महाबोधि मंदिरविहार परिसर से 1किलोमीटर पश्िचम में स्थित)। इस मठ के छत की सोने से कलई की गई है। इस कारण इसे गोल्डेन मठ कहा जाता है। इस मठ की स्थापना थाईलैंड के राजपरिवार ने बौद्ध की स्थापना के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में किया था। इंडोसन-निप्पन-जापानी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर से 11.5 किलोमीटर दक्षिण-पश्िचम में स्थित) का निर्माण 1972-73 में हुआ था। इस मंदिरविहार का निर्माण लकड़ी के बने प्राचीन जापानी मंदिरोंविहारों के आधार पर किया गया है। इस मंदिरविहार में बुद्ध के जीवन में घटी महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है। चीनी मंदिरविहार (महाबोधि मंदिर परिसर के पश्िचम में पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्थित) का निर्माण 1945 ई. में हुआ था। इस मंदिरविहार में सोने की बनी बुद्ध की एक प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिरविहार का पुनर्निर्माण 1997 ई. किया गया था। जापानी मंदिरविहार के उत्तर में भूटानी मठ स्थित है। इस मठ की दीवारों पर नक्काशी का बेहतरीन काम किया गया है। यहां सबसे नया बना मंदिरविहार वियतनामी मंदिरविहार है। यह मंदिरविहार महाबोधि मंदिरविहार के उत्तर में 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। इस मंदिरविहार का निर्माण 2002 ई. में किया गया है। इस मंदिरविहार में बुद्ध के शांति के अवतार [[अवलोकितेश्वर]] की मूर्त्ति स्थापित है।
इन मठों और मंदिरोंविहारों के अलावा के कुछ और स्मारक भी यहां देखने लायकप्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक है भारत की सबसे ऊंचीं बुद्ध मूर्त्ति जो कि 6 फीट ऊंचे कमल के फूल पर स्थापित है। यह पूरी प्रतिमा एक 10 फीट ऊंचे आधार पर बनी हुई है। स्थानीय लोग इस मूर्त्ति को 80 फीट ऊंचा मानते हैं।
== आसपास के दर्शनीय स्थल ==
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