"जमुई": अवतरणों में अंतर

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जिला मुख्यालय से लगभग १५ किलो मीटर दूर खैरा प्रखंड में गिद्धेश्वर स्थान है। कहा जाता है की राम व रावण की लड़ाई में जब रावण-सीता का अपहरण कर लंका जा रहा था तो यही वह स्थान है जब गिद्धराज जटायु ने रावण से युद्ध किया था। आज भी यह स्थान क्षेत्र के लोगों के लिए दर्शनीय केन्द्र है। यहाँ गिद्धेश्वर महादेव मंदिर भी है जो यहाँ के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।
प्रचलित कथा के अनुसार यहां के पर्वत पर ही जटायु ने रावण से उस वक्त युद्ध किया था जब माता सीता का अपहरण कर ले जा रहा था। गुस्से में रावण ने जटायु का पंख काट डाला था और यहीं पर गिरकर मौक्ष की प्राप्ति किया था। चुकि जटायू गिद्ध था इसलिए इस स्थान का नाम गिद्धेश्वर और यहां निर्मित मंदिर का नाम गिद्धेश्वर मंदिर पड़ा। गिद्धेश्वर मंदिर का निर्माण खैरा स्टेट के तत्कालीन तहसीलदार लाला हरिनंदन प्रसाद द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व किया गया है।
प्रकृति के खुबसूरत वादियों में बसे गिद्धेश्वर स्थान और इसके आसपास विशाल भू-भाग को आदर्श पिकनिक स्थल के रूप में विकसित है। यहां हरे-भरे पेड़-पौधों से अच्छादित पर्वत, बीच में भव्य मंदिर, आगे शिवगंग (तालाब) तथा किउल नदी की कलकल-छलछल करती जलधारा बरबस ही श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैलानियों को भी आकर्षित करता है।
 
=== पत्नेश्वर स्थान ===
किउल नदी तट पर पत्‍‌नेश्वर पहाड़ पर अवस्थित पत्‍‌नेश्वर नाथ मंदिर राजकाल से ही लोगों की आस्था का केन्द्र रहा है। धर्मावलंबी जनों की मानें तो यहां की पूजा करने से असाध्य रोग दूर हो जाता है। इस मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उक्त स्थल पर स्वयं शिवलिंग अवतरित हुआ है। शिवलिंग के आसपास मंदिर का निर्माण किया गया जहां जमुई के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। पुजारियों ने बताया कि बनैली राज स्टेट द्वारा उक्त मंदिर और आसपास का परिसर ब्राह्माणों को पूजन के लिए दिया गया। शुरुआती दौर में यहां आबादी नहीं के बराबर थी तब यहां एक साधु महात्मा आए थे। उड़ीया बाबा के नाम से मशहूर उक्त महात्मा काफी दिनों तक पत्‍‌नेश्वर पहाड़ पर रहे। उन्होंने बताया कि उन्हें गलित कुष्ठ था और देवघर बाबाधाम मंदिर में पूजा के दौरान उन्हें पत्‍‌नेश्वर में पूजा करने का स्वप्न हुआ। वे स्वयं पत्‍‌नेश्वर में पूजा के बाद स्वस्थ हुए और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने जंगल पहाड़ के स्थल पर किउल नदी में हर रोज स्नान कर पूजा से कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से मुक्ति का मार्ग बताया था। बदलते वक्त के साथ यहां अब भव्य मंदिर बन गया है। हर साल सावन माह में यहां भक्त ही भगवान की परीक्षा लेते हैं। इस विशेष पूजन में छोटे से शिवलिंग को चारो ओर से घेरकर कई मन दूध तथा गंगा जल से अभिषेक कराया जाता है। इस पूजन में लगातार अभिषेक के बावजूद शिवलिंग को पूरी तरह से दूध अथवा जल में डुबाना मुश्किल होता है। इस आयोजन के दौरान भारी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। बदलते वक्त के साथ अब जमुई शहर में प्रवेश के साथ ही पत्‍‌नेश्वर पहाड़, किउल नदी के बीच पत्‍‌नेश्वर धाम में मंदिर का मनोहारी दृश्य लोगों को बरबस ही आकर्षित कर रहा है। पूरे साल यहां सैकड़ों की संख्या में शादियां और पूजा-पाठ का कार्यक्रम चलता रहता है।
 
=== माँ नेतुला मंदिर ===
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जमुई" से प्राप्त