"जल चक्की": अवतरणों में अंतर
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वर्गीकरण - यह वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार है :
===1. [[जलधारा के प्रवाह]] तथा [[गुरुत्वाकर्षण ]]से पैदा ऊर्जा से चलने वाला
ये चक्र जलधारा के प्रवाह में रुकावट डालने पर होलेवाले प्रभाव (impact) अथवा चक्र की डोलचियों (डिब्बों) में भरे पानी के भार के कारण चला करते हैं।
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ऊँचाई 5 से लेकर 500 फुट तक हो सकता है।
[[जलधारा]] के प्रवाह तथा गुरुत्वाकर्षण से पैदा
उपयोग तो अब देहातों में कुटीर उद्योगों के उपयुक्त ही समझा जाता है, पहाड़ी
स्थानों पर जहाँ निरंतर झरने बहते रहते हैं। इस प्रकार के चक्रों में अध:प्रवाही
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== अध: प्रवाही चक्र -==
कार्यक्षमता लगभग 25 प्रति शत ही होती
== पॉन्सले का चक्र - ==
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आधुनिक प्रकार के आवेग चक्र पॉन्सले के अध:प्रवाही चक्र के परिष्कृत रूप हैं। इनमें स्लूस मार्ग (sluice way) के स्थान पर तुड़ों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से पानी की प्रधार (jet) बड़े बेग से निकलकर चक्र की पंखुड़ियों से टकराती है। इस ढंग के जिस संयंत्र का सर्वाधिक प्रचार है वह[[ पेल्टन चक्र]] (Pelton's Wheel) के नाम से प्रसिद्ध है, में उसकी एक [[डोलची ]](bucket) तथा पानी की धार का आरेख है। डोलची को दो जुड़वाँ प्यालों के रूप में इस प्रकार बना दिया गया है कि पानी की प्रधार उसके मध्य में टकराते ही फटकर, दो भागों में विभक्त होकर, एक दूसरी से लगभग 180 डिग्री के कोणांतर पर चलने लगती है। यदि ये दोनों उपप्रधाराएँ अपनी मूल प्रधारा से बिलकुल विपरीत दिशा में बह निकले तो अवश्य ही पेल्टन चक्र की कार्यक्षमता 100 प्रति शत हो जाय, लेकिन इन्हें जान बूझकर तिरछा करके निकाला जाता है, जिससे ये अपने पासवाली डोलची से टकराएँ नहीं। ऐसा करने से अवश्य ही कुछ ऊर्जा घर्षण में बरबाद हो जाती है, जिससे इस चक्र की कार्य-क्षमता लगभग 80 प्रतिशत ही रह जाती है।
इसमें चिह्नित मार्ग से पानी प्रविष्ट होता है और टोंटी से चक्र पर लगे पंख (blades) पर पड़ता हैं। इसमें
== प्रतिक्रिया टरबाइन == (Reaction Turbine) -
प्रतिक्रियात्मक टरबाइनें पानी के प्रवाह के दिशानुसार निम्नलिखित चार मुख्य वर्गों में बाँटी जा सकती हैं : 1. त्रैज्य बहिर्प्रवाही, 2. त्रैज्य अंत:प्रवाही, 3. अक्षीय प्रवाही और 4. मिश्रप्रवाही।
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फूर्नेरॉन नामक एक फ्रांसीसी इंजीनियर ने बार्कर मिल के सिद्धांतानुसार केद्रीय जलमार्ग से बाहर की तरफ त्रैज्य दिशा में बहने के लिए मार्गदर्शक तुंडों को तो स्थिर प्रकार का बनाकर, उनके बाहर की तरफ घूमनेवाला पंखुडीयुक्त चक्र बनाया, इसमें प केंद्रीय कक्ष है, जिसमें पानी प्रविष्ट होकर त्रैज्य दिशा में फ चिह्नित तुंड में जाकर चक्र की ब चिह्नित पंखों को घुमाता हुआ बाहर निकल जाता है। इसमें घ केंद्रीय धुरा है, जिससे डायनेमो आदि संबंधित रहता है। यह त्रैज्य बहिर्प्रवाही टरबाइन का नमूना है।
जूवाल (Jouval) का अक्षीय प्रवाहयुक्त टरबाइन -
== फ्रैंसिस का अंत:प्रवाही टरबाइन -==
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इस सूत्र में ब (H) = वर्चस् फुटों में; स (n) = धावनचक्र की चाल, चक्कर प्रति मिनट में। गुणांक ग (a) का मान उच्च वर्चसयुक्त टरबाइन के लिए 0.6, मध्यम वर्चस्युक्त टरबाइन के लिये 0.7 और अल्प वर्चस्युक्त टरबाइन के लिए 0.8 रखा जाता है।
जलचलित मोटरों के परिष्कृत रूप अब भी थोड़ी मात्रा में शक्ति उत्पादन करने के लिए देहाती क्षेत्रों में प्रयुक्त होते हैं। इनके एकहरे चक्र का व्यास 60 फुट तक बना दिया जाता है तथा उसकी चौड़ाई इतनी रखी जाती है कि वह 3,000 घन फुट पानी प्रति मिनट से चला सके। ये पर्याप्त मंद गति से चला करते हैं, अत: इन्हें पूरे का पूरा इस्पात की चादरों तथा बेले हुए छड़ों से बनाया जाता है। चक्रों की भीतरी परिधियों पर दाँते बना दिए जाते हैं, जिनसे एक तरफ लगा हुआ छोटा दंतचक्र
== आवेगचक्र - ==
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संयंत्रों का विन्यास (Plant Arrangement) -
वर्चसद्वार, जलनालिकाएं (flumes), टरबाइन डायनेमी और भवन आदि दिखाए गए हैं। वर्चस् के जल के साथ [[खड़ी टरबाइन]] और
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