"जर्मनी का एकीकरण": अवतरणों में अंतर

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[[फ्रांस की क्रांति]] द्वारा उत्पन्न नवीन विचारों से जर्मनी प्रभावित हुआ था। [[नेपोलियन]] ने अपनी विजयों द्वारा विभिन्न जर्मन-राज्यों को राईन-संघ के अंतर्गत संगठित किया, जिससे जर्मन-राज्यों को एक साथ रहने का एहसास हुआ। इससे जर्मनी में एकता की भावना का प्रसार हुआ। यही कारण था कि जर्मन-राज्यों ने [[वियना कांग्रेस]] के समक्ष उन्हें एक सूत्र में संगठित करने की पेशकश की, पर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
 
वियना कांग्रेस द्वारा जर्मन-राज्यों की जो नवीन व्यवस्था की गयी, उसके अनुसार उन्हें शिथिल संघ के रूप में संगठित किया गया और उसका अध्यक्ष ऑस्ट्रिया को बनाया गया। राजवंश के हितों को ध्यान में रखते हुए विविध जर्मन राज्यों का पुनरूद्धार किया गया। इन राज्यों के लिए एक संघीय सभा का गठन किया गया, जिसका अधिवेशन [[फ्रेंकफर्ट]] में होता था। इसके सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित न होकर विभिन्न राज्यों के राजाओं द्वारा मनोनीत किए जाते थे। ये शासक नवीन विचारों के विरोधी थे और राष्ट्रीय एकता की बात को नापसंद करते थे किन्तु जर्मन राज्यों की जनता में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना विद्यमान थी। यह नवीन व्यवस्था इस प्रकार थी कि वहाँ आस्ट्रिया का वर्चस्व विद्यमान था। इस जर्मन क्षेत्र में लगभग 39 राज्य थे जिनका एक संघ बनाया गया था।
 
जर्मनी के विभिन्न राज्यों में चुंगीकर के अलग-अलग नियम थे, जिनसे वहां के व्यापारिक विकास में बड़ी अड़चने आती थीं। इस बाधा को दूर करने के लिए जर्मन राज्यों ने मिलकर चुंगी संघ का निर्माण किया। यह एक प्रकार का व्यापारिक संघ था, जिसका अधिवेशन प्रतिवर्ष होता था। इस संघ का निर्णय सर्वसम्मत होता था। अब सारे जर्मन राज्यों में एक ही प्रकार का सीमा-शुल्क लागू कर दिया गया। इस व्यवस्था से जर्मनी के व्यापार का विकास हुआ, साथ ही इसने वहाँ एकता की भावना का सूत्रपात भी किया। इस प्रकार इस आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकता की भावना को गति प्राप्त हुई। वास्तव में, जर्मन राज्यों के एकीकरण की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम था।
 
===फ्रांस की क्रान्तियों का प्रभाव===
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सर्वप्रथम बिस्मार्क ने अपनी शक्ति का प्रहार डेनमार्क के राज्य पर किया। जर्मनी और डेनमार्क के बीच दो प्रदेश विद्यमान थे, जिनके नाम श्लेसविग और हॉलस्टीन थे। ये दोनों प्रदेश सदियों से डेनमार्क के अधिकार में थे, पर इसके भाग नहीं थे। हॉलस्टीन की जनता जर्मन जाति की थी, जबकि श्लेसविग में आधे जर्मन और आधे डेन थे।
 
19वीं सदी में अन्य देशें की तरह डेनमार्क में भी राष्ट्रीयता की लहर फैली, जिससे प्रभावित होकर डेन देशभक्तों ने देश के एकीकरण का प्रयत्न किया। वे चाहते थे कि उक्त दोनों राज्यों को डेनमार्क में शामिल कर उसकी शक्ति को सुदृढ़ कर लिया जाए। फलस्वरूप 1863 ई. में डेनमार्क के शासक [[क्रिश्चियन दशम्]] ने उक्त प्रदेशं को अपने राज्य में शामिल करने की घोषणा कर दी। उसका यह कार्य 1852 ई. में संपन्न लंदन समझौते के विरूद्ध था, इसीलिए जर्मन राज्यों ने इसका विरोध किया। उन्होंने यह मांग की कि इन प्रदेशं को डेनमार्क के अधिकार से मुक्त किया जाए। प्रशा ने भी डेनमार्क की इस नीति का वरोध किया। बिस्मार्क ने सोचा कि डेनमार्क के खिलाफ युद्ध करने का यह अनुकूल अवसर है। वह इन प्रदेशं पर प्रशा का अधिकार स्थापित करने का इच्छुक था। इस कार्य को वह अकेले न कर आस्ट्रिया के सहयोग से पूरा करना चाहता था, ताकि प्रशा के खिलाफ कोई विपरीत प्रतिक्रिया न हो। आस्ट्रिया ने भी इस कार्य में प्रशा का सहयोग करना उचित समझा। इसका कारण यह था कि यदि प्रशा इस मामले में अकेले हस्तक्षेप करता तो जर्मनी में ऑस्ट्रिया का प्रभाव कम हो जाता। इसके अतिरिक्त वह 1852 ई. के लंदन समझौते का पूर्ण रूप से पालन करना चाहता था। इस प्रकार प्रशा और ऑस्ट्रिया दोनों ने सम्मिलित रूप से डेनमार्क के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया। फलस्वरूप 1864 ई. में उन्होंने डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। डेनमार्क पराजित हो गया और उसने आक्रमणकारियों के साथ एक समझौता किया। इसके अनुसार उसे श्लेसविग और हॉलस्टील के साथ-साथ लायनबुर्ग के अधिकार से भी वंचित होना पड़ा।
 
===गेस्टीन का समझौता ===