"जैनेन्द्र कुमार": अवतरणों में अंतर
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{{आज का आलेख}}
{{ज्ञानसन्दूक लेखक
| नाम
| चित्र
| चित्र आकार
| चित्र शीर्षक
| उपनाम
| जन्मतारीख़
| जन्मस्थान = कौड़ियालगंज [[अलीगढ़ जिला|अलीगढ़]] [[भारत]]
| मृत्युतारीख़
| मृत्युस्थान = [[नई दिल्ली]]
| कार्यक्षेत्र
| राष्ट्रीयता = [[भारत|भारतीय]]
| भाषा = [[हिन्दी]]
| काल
| विधा
| विषय
| आन्दोलन
| पहली कृति = [[परख]] [[उपन्यास]]
| प्रभाव डालने वाला= प्रेमचंद
| प्रभावित
| हस्ताक्षर
| जालपृष्ठ
| टीका-टिप्पणी
| मुख्य काम = लेखन
}}प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्रकुमार ([[२ जनवरी]], [[१९०५]]- [[२४ दिसंबर]], [[१९८८]]) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं।<ref>{{cite book |last=वर्मा |first= धीरेन्द्र|title= हिन्दी साहित्य कोश भाग-२|year= १९८५ |publisher= ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, उ.प्र.|location= वाराणसी, भारत|id= |page= २१९-२२०-२२१|editor:धीरेंद्र वर्मा |accessday= १७|accessmonth=अक्तूबर|accessyear=२००७}}</ref>
== जीवन परिचय ==
जैनेंद्र कुमार का जन्म २ जनवरी सन [[१९०५]], में [[अलीगढ़ जिला|अलीगढ़]] के [[कौड़ियागंज]] गांव में हुआ।<ref>{{cite web |url= http://jainsamaj.org/celebrities/jainendra-११०१०३.htm|title= पद्मभूषण जैनेंद्र कुमार|accessmonthday=[[१८ अक्तूबर]]|accessyear=[[२००७]]|format= एचटीएम|publisher=जैनसमाज.ऑर्ग|language=अंग्रेज़ी}}</ref> उनके बचपन का नाम आनंदीलाल<ref>{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/sahitya/article/index.php?page=article&category=5&articleid=607|title= जैनेन्द्र: अप्रतिम कथा शिल्पी
पीएचपी|publisher=याहू जागरण|language=}}</ref> था। इनकी मुख्य देन [[उपन्यास]] तथा [[कहानी]] है। एक साहित्य विचारक के रूप में भी इनका स्थान मान्य है। इनके जन्म के दो वर्ष पश्चात इनके पिता की मृत्यु हो गई। इनकी माता एवं मामा ने ही इनका पालन-पोषण किया। इनके मामा ने [[हस्तिनापुर]] में एक [[गुरुकुल]] की स्थापना की थी। वहीं जैनेंद्र की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हुई। उनका नामकरण भी इसी संस्था में हुआ। उनका घर का नाम आनंदी लाल था। सन १९१२ में उन्होंने गुरुकुल छोड़ दिया। प्राइवेट रूप से मैट्रिक परीक्षा में बैठने की तैयारी के लिए वह [[बिजनौर]] आ गए। १९१९ में उन्होंने यह परीक्षा बिजनौर से न देकर पंजाब से उत्तीर्ण की। जैनेंद्र की उच्च शिक्षा [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] में हुई। १९२१ में उन्होंने विश्वविद्यालय की पढ़ाई छोड़ दी और कांग्रेस के [[असहयोग आंदोलन]] में भाग लेने के उद्देश्य से दिल्ली आ गए। कुछ समय के लिए ये [[लाला लाजपत राय]] के '[[तिलक स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स]]' में भी रहे, परंतु अंत में उसे भी छोड़ दिया।
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