"टिहरी गढ़वाल जिला": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox Indian Jurisdiction |
| नगर का नाम = टिहरी गढ़वाल
| प्रकार = जिला
| latd = 30.3833
| longd= 78.4833
| प्रदेश = उत्तराखण्ड
| जिला = [[टिहरी गढ़वाल]]
| शासक पद = chef
| शासक का नाम = koti sajwano ki
| शासक पद 2 = [[नगर पालिका अध्यक्ष]]
| शासक का नाम 2 = paurikhal
| ऊँचाई = 2000
| जनगणना का वर्ष = २००१
| जनगणना स्तर = 65000
| जनसंख्या = ५,८०,१५३
| घनत्व =
| क्षेत्रफल = ४,४२१
| दूरभाष कोड = ०१३७६
| पिनकोड = २४९२०x
| वाहन रेजिस्ट्रेशन कोड =
| unlocode =
| वेबसाइट = tehri.nic.in
| skyline = Tehri Dam lake.jpg
| skyline_caption = [[टिहरी बाँध]] की झील
| टिप्पणियाँ = main gaon koti sajwano ki paurikhal se hun..... Hai ghandiyaal devta ki
}}
 
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=== महासरताल ===
केदारखंड हिमालय ऋषि मुनियों की तप स्थली रही है। ऋषि मुनियों ने इस पवित्र पर विश्व जन कल्याण के निमित धर्म ग्रन्थॊ की रचना की है। जॊ कि भारतीय संस्कृति के मूल श्रॊत है ऒर यह बात हम दवॆ के साथ कह सकते है कि इसी हिमालय से भारतीय संस्कृति पूरे देश मे फैली। केदारखंड हिमालय की आदिम जातियों मे कील, भील, किन्नर, गंधर्व, गुर्जर, नाग आदि को गिना जाता है। इन जातियॊ से समंधित अनेक गांव आज भी यहाँ मॊजूद है जैसे नागनाथ, नागराजाधार, नगुण, नागेश्वरसौड़, नागणी आदि आदि।।।। बहरहाल यह प्रसांगिक है, इस बारे में आगे कभी उल्लॆख होगा। आज की श्रृंखला में नागॊं का उल्लॆख् करता हूं। केदार हिमालय में नाग जाति के रहने के पुष्ट प्रमाण मिलते है। गढ़वाल मे नागराजा का मुख्य स्थान सेम मुखॆम माना जाता है, इसी संदर्व मे नागवंश मे महासरनाग का विशिष्ट स्थान है। जॊ कि बालगंगा क्षेत्र मे महत्वपूर्ण देवता की श्रॆणी मे गिना जाता है। महासरनाग का निवास स्थान महासरताल है। महासरताल बूढ़ाकेदार से करीब 10 कि। मी। उत्तर की ऒर लगभग दस हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। प्राकृतिक सॊन्दर्य से भरपूर, भिन्न भिन्न प्रजातियों एवं दुर्लभ वृक्छॊं की ऒट मे स्थित महासरताल से जुड़ी संछिप्त मगर ऐतिहासिक गाथा के बारे मे जानने के लियॆ करीब तेरह सौ साल पुराने इतिहास को खंगलाना पड़ॆगा। करीब तेरह सौ वर्ष पूर्व मैकोटकेमर मे धुमराणा शाह नाम का राजा राज्य करता था इनका एक ही पुत्र हुआ जिनका नाम था उमराणाशाह जिसकी कोई संतान न थी। उमराणाशाह ने पुत्र प्राप्ति के लियॆ शॆषनाग की तपस्या की। उमराणाशाह तथा उनकी पत्नी फुलमाळा की तपस्या से शॆषनाग प्रस न्न हुयॆ और मनुष्य रूप मे प्रकट होकर उन्हॆ कहा कि मै तुम्हारे घर मे नाग रूप मे जन्म लूँगा। फलत: शॆषनाग ने फुलमाळा के गर्भ से दो नागॊं के रूप में जन्म लिया जॊ कि कभी मानव रूप मे तो कभी नाग रूप मे परिवर्तित होते रहते थॆ। नाग का नाम महासर (म्हार) तथा नागिन का नाम माहेश्वरी (म्हारीण) रखा गया। उमराणाशाह की दो पत्नियां थी। दूसरी पत्नी की कोई संतान न थी। सौतेली मां की कूटनीति का शिकार होने के कारण उन नाग। नागिन (भाई बहिन) को घरसे निकाल दिया गया। फलस्वरूप दोनो भाई बहिनो ने बूढ़ाकेदार क्षेत्र मे बालगंगा के तट पर विशन नामक स्थान चुना। विशन मे आज भी इनका मन्दिर विध्यमान है। इन नागॊं ने मनुष्य रूप मे अवतरित होकर भट्ट वंश के पुरखॊं से वचनबध्द हुयॆ कि तुम हमारी परम्परा के अनुसार मन्दिर मे पूजा करॊगे। आज भी इस परम्परा का निर्वहन विधिवत किया जा रहा है, यानि भट्ट जाति के लोग नाग की पूजा अनवरत् रूप में करते आ रहे है। उल्लॆखनीय है कि इन भट्ट पुजारियॊ के पास महाराजा सुदर्शनशाह द्वारा नागपूजा विषयक दिया गया ताम्रपत्र सुरक्छित है। बालगंगा क्षेत्र के राणा जाति के लोगो को 'नागवंशी राणा' कहा जाता है (दूसरा वंश सूर्यवंशी कहा जाता है)।
विशन गाँव के अतिरिक्त नाग वंशी दोनो भाई बहिनो ने एक और स्थान चुना जॊ विशन गाँव के काफी ऊपर है जिसे 'महसरताल' कहते है (पौराणिक नाम कुछ रहा होगा जॊ अग्यात है)। नाग विष्णु स्वरूप जल का देवता माना जाता है और नाग देवता का निवास जल मे ही होता है अत: इस स्थान पर दो बड़ी बड़ी झीलॆं है जिन्हॆ 'म्हार'और 'म्हारीणी' का ताल कहा जाता है। कहते है नागवंशी दोनो भाई बहिन इन्ही दो तालॊं मे निवास करते है। महासरताल मे 'म्हार' देवता का एक पौराणिक मन्दिर है जिसके गर्भगृह मे पत्थर का बना नाग देवता है। गंगा दशहरा के अवसर पर महासरनाग की मूर्ति (नागदेवता) मूल मन्दिर विशन से डॊली मे रखकर महासरताल स्नान के लियॆ ले जायी जाती है। इस पुण्य पर्व पर माहासरनाग को मंत्रॊच्चार के साथ वैदिक रीति से स्नान कराकर यग्य, पूजा। अर्चना आदि करायी जाती है। इस अवसर पर दूर_ दूर से श्रध्दालु आकर इस ताल मे स्नान कर पुण्य कमाते है। गंगा दशहरा को लगने वाला यह मेला प्राचीनकाल से चला आ रहा है। इस ताल की लंबाई करीब 70 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर के लगभग है। जबकि 'म्हारीणी' ताल वृताकार है। दोनो तालॊं की गहराई का पता नही चल पाया।
 
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=== नागटिब्बा ===
यह जगह समुद्र तल से 3040 मीटर की ऊंचाई पर मसुरी से 70 किमी दूर यमनोत्री मार्ग से होते हुये नैनबाग से कुछ दूर स्थित है। यहां से आप हिमालय की खूबसूरत वादियों के नजारों का लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त यहां से देहरादून की घाटियों का नजारा भी देखा जा सकता है। नगतिबा ट्रैर्क्‍स और पर्वतारोहियों के लिए बिल्कुल सही जगह है। इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता यहां पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। नगतिबा पंतवारी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां रहने की सुविधा नहीं है। इसलिए ट्रैर्क्‍स पंतवारी में कैम्प में रहा करते हैं। इसलिए आप जब इस जगह पर जाएं तो अपने साथ टैंट व अन्य सामान जरूर ले कर जाएं। यह स्थान नागराजा मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है
इस स्थान पर जाने के लिए एक और रास्ता , मसूरी से सुवाखौली से थत्यूड़ से बंगसील गाँव से देवलसारी है। देवलसारी एक बहुत ही रमणिक स्थान है। इसी स्थान से असली ट्रैक नागटिब्बा के लिए प्रारंभ होता है। यहाँ से नागटिब्बा 12 मील की दूरी पर है। रास्ते मे अनेक प्रकार के रमणिक और रहस्यमय स्थान देखने को मिलते है। अधिकतर ट्रैकर्स इसी रास्ते से होकर ट्रैक पर जाते है।
 
=== नरेन्द्र नगर ===