"दोहा": अवतरणों में अंतर

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'''दोहा''', मात्रिक [[अर्द्धसम]] [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (। ऽ।) टालते है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का आरम्भ ज-गण से ही होता है. </br>
सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है। </br>
 
उदाहरण-
पंक्ति 9:
 
मुरली वाले मोहना, मुरली नेक बजाय।<br />
तेरी मुरली मन हरो, घर अँगना न सुहाय॥ </br>
 
हेमचन्द्र के मतानुसार दोहा-छन्द के लक्षण हैं - समे द्वादश ओजे चतुर्दश दोहक: </br>
समपाद के अन्तिम स्थान पर स्थित लघु वर्ण को हेमचन्द्र गुरु-वर्ण का मापन देता है. 'अत्र समपादान्ते गुरुद्वयमित्याम्नाय:' यह सूत्र विषद किया है. </br>
 
मम तावन्मतमेतदिह - किमपि यदस्ति तदस्तु </br>
रमणीभ्यो रमणीयतरमन्यत् किमपि न वस्तु </br>
 
सोरठ तथा दोहा इन छन्दों में कुछ समान सूत्र हैं, अत: सोरठा के बारे में भी वाचक अधिक सूचना प्राप्त करें. </br>
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/दोहा" से प्राप्त