"द्वितीय चीन-जापान युद्ध": अवतरणों में अंतर

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==जापान में साम्राज्यावादी नीति का उद्भव : तनाका स्मरण-पत्र==
अपै्रल 1927 ई. में बैरन [[तनाका]] जापान का प्रधानमंत्री बना। तनाका शक्ति के प्रयोग के द्वारा जापान के उद्योगों को विकास करना चाहता था। जापान की नीति क्या होनी चाहिए, इस विषय पर तनाका ने एक गुप्त सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें जापान के सेनाध्यक्षों तथा वित्त और युद्ध विभागों के अधिकारियों ने भाग लिया था। कहा जाता है कि इस सम्मेलन के निर्णय के आधार पर स्मरण पत्र तैयार किया गया। इस स्मरण पत्र को ‘तनाका स्मरण-पत्र’ कहा गया और सम्राट की स्वीकृति के लिए इसे 25 जुलाई, 1927 ई. को प्रस्तुत किया गया। इस स्मरण-पत्र में कहा गया था कि अगर जापान विकास करना चाहता है और अपने अस्तित्व की रक्षा करना चाहता है तो उसे [[कोरिया]], [[मंचूरिया]], [[मंगोलिया]] और [[चीन]] की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, जापान को संपूर्ण एशिया और दक्षिण सागर के प्रदेशों को भी जीतना आवश्यक होगा। स्मरण-पत्र में आगे कहा गया था कि अगर जापान अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है तो उसे ‘रक्त और लौह’ की नीति (आइरन ऐण्ड ब्ल्ड पॉलिसी) अपनानी पड़ेगी और इस नीति की सफलता के लिए चीन को पहले विजय करना आवश्यक है।
 
==द्वितीय चीन-जापान युद्ध : प्रथम चरण==
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अब जापान ने चीन के प्रदेशों पर अधिकार प्राप्त करना प्रारंभ किया जो निम्नलिखित हैं-
*(1) नानकिंग पर अधिकार
*(2) जेहोल पर अधिकार
*(3) मंगोलिया पर अधिकार
*(4) उत्तरी चीन-होयेई, शान्सी, शान्तुंग पर जापान का अधिकार