"नारायण दत्त तिवारी": अवतरणों में अंतर

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'''नारायण दत्‍त तिवारी''',[[भारत]] के उत्तर प्रदेश की [[उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा|प्रथम विधानसभा सभा]] में विधायक रहे/रहीं। [[1952 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव]] में इन्होंने उत्तर प्रदेश के नैनीताल जिले के [[ 15 - काशीपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र]] से [[सोशलिस्‍ट पार्टी]] की ओर से चुनाव में भाग लिया। <ref>[http://uplegisassembly.gov.in उत्तर प्रदेश विधान सभा]</ref>
 
== सन्दर्भ ==
'''नारायण दत्त तिवारी''' [[उत्तर प्रदेश]] और [[उत्तराखण्ड]] (तब उत्तराञ्चल) के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री हैं। वह [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के एक वरिष्ठ नेता हैं।
{{टिप्पणीसूची}}
 
[[श्रेणी:उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के मुख्यमंत्रीसदस्य]]
== व्यक्तिगत जीवन ==
[[श्रेणी: 15 - काशीपुर के विधायक]]
नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। तब न उत्तर प्रदेश का गठन भी नहीं हुआ था। भारत का ये हिस्सा 1937 के बाद से यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना गया और आजादी के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। जाहिर है तब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रही होगी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। नारायण दत्त तिवारी शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। यकीनन अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। अपने पिता की तरह ही वे भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे।
[[श्रेणी:नैनीताल के विधायक]]
15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हुआ। बाद में तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टाप किया था। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी। आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया। कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए। यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई। 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे।
[[श्रेणी:सोशलिस्‍ट पार्टी के विधायक]]
कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली। 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था। 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था। 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।
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तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है। 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई। पर आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई। बाद में तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा।
{{विस्तार}}
 
== राजनीतिक जीवन ==
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी को आज उस समय बड़ा झटका लगा, जब दिल्ली हाईकोर्ट में उनके रक्त के नमूने संबंधी डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक किया गया और उस रिपोर्ट के अनुसार पितृत्च वाद दायर करने वाले रोहित शेखर ही एनडी तिवारी के बेटे हैं।
 
दिल्ली में रहने वाले 32 साल के रोहित शेखर का दावा है कि एनडी तिवारी ही उसके जैविक पिता हैं और इसी दावे को सच साबित करने के लिए रोहित और उसकी मां उज्ज्वला शर्मा ने 4 साल पहले यानी 2008 में अदालत में एन डी तिवारी के खिलाफ पितृत्व का केस दाखिल किया था।
 
अदालत ने मामले की सुनवाई की और अदालत के ही आदेश पर पिछले 29 मई को डीएनए जांच के लिए एनडी तिवारी को अपना खून देना पड़ा था।
 
देहरादून स्थित आवास में अदालत की निगरानी में एनडी तिवारी का ब्लड सैंपल लिया गया था। कुछ दिनों पहले हैदराबाद के सेंटर फोर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायएग्नोस्टिक्स यानी सीडीएफडी ने ब्ल़ड सैंपल की जांच रिपोर्ट अदालत को सौंप दी।
 
सीडीएफडी की इस सील्ड रिपोर्ट में एनडी तिवारी के साथ रोहित शेखर और रोहित की मां उज्ज्वला शर्मा की भी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट शामिल हैं। हालांकि एनडी तिवारी नहीं चाहते कि उनकी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट सार्वजनिक हो इसलिए उन्होंने अदालत में इसे गोपनीय रखने के लिए याचिका भी दी थी लेकिन अदालत इसे खारिज कर दिया और इसे खोलने का आदेश जारी कर दिया।
 
== सन्दर्भ ==
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.livehindustan.com/news/desh/today-news/article1-story-329-329-235288.html तिवारी को देना पड़ा खून का नमूना]
* [http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/151554/1/20 पितृत्व विवाद : सर्वोच्च न्यायालय में तिवारी की अपील खारिज]
* [http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/692930/9/76/Narayan-Dutt-Tiwari-Narayan-Datt-Tiwari-Life-Story.html नारायण दत्त तिवारी: जब तक सांस तब तक सियासत] (आज तक)
{{उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री}}
 
[[श्रेणी:1925 में जन्मे लोग]]
[[श्रेणी:जीवित लोग]]
[[श्रेणी:उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री]]
[[श्रेणी:उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री]]
[[श्रेणी:आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल]]
[[श्रेणी:७वीं लोक सभा के सदस्य]]
[[श्रेणी:१०वीं लोक सभा के सदस्य]]
[[श्रेणी:राज्यसभा सदस्य]]
[[श्रेणी:उत्तराखण्ड के लोग]]
[[श्रेणी:भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ]]
[[श्रेणी:इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र‎]]
 
 
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