"नृत्यरचना": अवतरणों में अंतर

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भारतीय शास्त्रीय नृत्य में नर्तन के तीनो भेदो नृत्त, नाटय व नृत्य के दर्शन अलग-अलग रूप से भली-भाँति किये जा सकते है। नृत्य बना है नाट्य व नृत्त से मिलकर और इस नृत्य का विकास केवल भारतीय नृत्यों में ही देखा जा सकता है। हाथ व पैरों के लय व तालबद्ध संचालन के साथ जब गीत के शब्दों के अनुकूल भावों का मेल होता है तब वह नृत्य होता है और यह नृत्य दर्शकों को पश्चिमी देशों के नृत्त की भाँति केवल चमत्कृत न ही करता है अपितु उनकी आत्मा को भी स्पर्श करता है। इसीलिये भारतीय नृत्यों ने जबसे कोरियोग्राफी की कला को आत्मसात किया है तब से उनमें एक नया आकर्षण पैदा हो गया है। भारतीय नृत्यों में विषयगत वैविध्यता तो है ही वेशभूषा में भी विविध रंगो की छटा है। अतः समूह संरचना के कौशल से इनके प्रभाव में कई गुना वृद्धि हो जाती है।
 
कोरियोग्राफी से एक सरल सी नृत्य रचना (composition) को भी आकर्षक बनाया जा सकता है। नृत्य संयोजन करते समय कोरियोग्राफर प्रशिक्षित नर्तको के समूह को असंख्य तरीको से संयोजित कर असीमित आकृतियों का निर्माण कर सकता है। कथक नृत्य की परम्परा में ये आकृतियाँ 'व्यूह रचना' के नाम से जानी जाती है। एकल नृत्य प्रदर्शन में इन व्यूह रचनाओं को चलनों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता था। समूह में इन रचनाओं का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है। समूह में प्रस्तुत की जाने वाली कुछ आकृतियाँ निम्नानुसार है।
 
*(१) '''त्रिकोण व्यूह''' - जब समूह में नर्तक दल के सदस्य इस प्रकार व्यवस्थित हो कि एक त्रिकोण का निर्माण हो तो उसे त्रिकोण व्यूह कहते है।