"पद्मावत": अवतरणों में अंतर
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:''' हीरामन की कथा'''
:''[[सिंहल द्वीप]] (श्रीलंका) का राजा गंधर्वसेन था, जिसकी कन्या पदमावती थी, जो पद्मिनी थी। उसने एक [[सुग्गा]] पाल रखा था, जिसका नाम हीरामन था। एक दिन पदमावती की अनुपस्थिति में बिल्ली के आक्रमण से बचकर वह सुग्गा भाग निकला और एक बहिलिए के द्वारा फँसा लिया गया। उस बहेलिए से उसे एक ब्राह्मण ने मोल ले लिया, जिसने चित्तौड़ आकर उसे वहाँ के राजा रतनसिंह राजपूत
:''अनेक वनों और समुद्रों को पार करके वह सिंहल पहुँचा। उसके साथ में वह सुग्गा भी था। सुग्गे के द्वारा उसने पदमावती के पास अपना प्रेमसंदेश भेजा। पदमावती जब उससे मिलने के लिये एक देवालय में आई, उसको देखकर वह मूर्छित हो गया और पदमावती उसको अचेत छोड़कर चली गई। चेत में आने पर रतनसेन बहुत दु:खी हुआ। जाते समय पदमावती ने उसके हृदय पर चंदन से यह लिख दिया था कि उसे वह तब पा सकेगा जब वह सात आकाशों (जैसे ऊँचे) सिंहलगढ़ पर चढ़कर आएगा। अत: उसने सुग्गे के बताए हुए गुप्त मार्ग से सिंहलगढ़ के भीतर प्रवेश किया। राजा को जब यह सूचना मिली तो उसने रतनसेन को शूली देने का आदेश दिया किंतु जब हीरामन से रतनसिंह राजपूत के बारे में उसे यथार्थ तथ्य ज्ञात हुआ, उसने पदमावती का विवाह उसके साथ कर दिया।
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