"पाषाण युग": अवतरणों में अंतर
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| हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओ का हथियार/औजार के रूप मे उपयोग- चिसल (लकड़ी एवं पत्थर छिलने के लिये), खेती मे प्रयुक्त होने वाले औजार, मिट्टी के बरतन, हथियार
| [[खेती]], शिकार एवं खाद्य संग्रह, मछली का शिकार और पशुपालन
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| rowspan="2"| कबीले से लेकर काँस्य युग के राज्यो तक
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==शैल चित्र==
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ऐसे ही शैल चित्र उत्तर प्रदेश के [[मीरजापुर]] जिले के विंध्यपहाड़ी के कंदराओं में भी मिला। जिसे सीता कोहबर नामक स्थान पर 12 फरवरी 2014 को एक गुमनाम पत्रकार शिवसागर बिंद ने खोज निकाला था। जिसकी पुष्टी के लिए उ० प्र० राज्य पुरातत्व विभाग
===शैल चित्र, सीता कोहबर, जनपद मीरजापुर===
जनपद मुख्यालय मीरजापुर से लगभग 11-12 किलोमीटर दूर टांडा जलप्रपात से लगभग एक किलोमीटर पहले “सीता कोहबर” नामक पहाड़ी पर एक कन्दरा में प्राचीन शैल-चित्रों के अवशेष प्रकाश में आये हैं।
लगभग पांच मीटर लम्बी गुफा, जिसकी छत 1.80 मीटर ऊँची तथा तीन मीटर चौड़ी है में अनेक चित्र बने हैं। विशालकाय मानवाकृति, मृग समूह को घेर कर शिकार करते भालाधारी घुड़सवार शिकारी, हाथी, वृषभ, बिच्छू तथा अन्य पशु- पक्षियों के चित्र गहरे तथा हल्के लाल रंग से बनाये गए हैं, इनके अंकन में पूर्णतया: खनिज रंगों ( हेमेटाईट को घिस कर )का प्रयोग किया गया है। इस गुफा में बने चित्रों के गहन विश्लेषण से प्रतीत होता है कि इनका अंकन तीन चरणों में किया गया है। प्रथम चरण में बने चित्र मुख्यतया: आखेट से सम्बन्धित है और गहरे लाल रंग से बनाये गए हैं , बाद में बने चित्र
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== बाहरी कड़ियाँ ==
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