"पीथमपुर के कालेश्वरनाथ": अवतरणों में अंतर
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इसी प्रकार पीथमपुर का मठ खरौद के समान शैव मठ था। खरौद के मठ के महंत गिरि गोस्वामी थे, उसी प्रकार पीथमपुर के इस शैव मठ के महंत भी गिरि गोस्वामी थे। पीथमपुर के आसपास खोखरा और धारािशव आदि गांवों में गिरि गोस्वामियों का निवास था। खोखरा में गिरि गोस्वामी के िशव मंदिर के अवशेष हैं और धारािशव उनकी मालगुजारी गांव है। इस मठ के पहले महंत श्री शंकर गिरि जी महाराज थे जो चार वर्ष तक इस मठ के महंत थे। उसके बाद श्री पुरूषोत्तम गिरि जी महाराज, श्री सोमवारपुरी जी महाराज, श्री लहरपुरी जी महाराज, श्री काशीपुरी जी महाराज, श्री िशवनारायण गिरि जी महाराज, श्री प्रागपुरि जी महाराज, स्वामी गिरिजानन्द जी महाराज, स्वामी वासुदेवानन्द जी महाराज और स्वामी दयानन्द जी महाराज इस मठ के महंत हुए। मठ के महंत तिलभांडेश्वर मठ काशी से संबंधित थे। स्वामी दयानन्द भारतीे जी को पीथमपुर मठ की व्यवस्था के लिए तिलभांडेश्वर मठ काशी के महंत स्वामी अच्युतानन्द जी महाराज ने 20.02.1953 को भेजा था। स्वामी गिरिजानन्दजी महाराज पीथमपुर मठ के आठवें महंत हुए। उन्होंने ही चांपा को मुख्यालय बनाकर चांपा में एक `सनातन धर्म संस्कृत पाठशाला` की स्थापना सन् 1923 में की थी। इस संस्कृत पाठशाला से अनेक विद्यार्थी पढ़कर उच्च िशक्षा के लिए काशी गये थे। आगे चलकर पीथमपुर में भी इस संस्कृत पाठशाला की एक शाखा खोली गयी थी। हांलाकि पीथमपुर में संस्कृत पाठशाला अधिक वर्षों तक नहीं चल सकी (लेकिन उस काल में संस्कृत में बोलना, लिखना और पढ़ना गर्व की बात थी। उस समय रायगढ़ और िशवरीनारायण में भी संस्कृत पाठशाला थी। अफरीद के पंडित देवीधर दीवान ने संस्कृत भाषा में विशेष रूचि होने के कारण अफरीद में एक संस्कृत ग्रंथालय की स्थापना की थी। आज इस ग्रंथालय में संस्कृत के दुर्लभ ग्रंथों का संग्रह है जिसके संरक्षण की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि यहां के दीवान परिवार का पीथमपुर से गहरा संबंध रहा है।
सम्प्रति पीथमपुर का मंदिर अच्छी स्थिति में है। समय समय पर चांपा जमींदार द्वारा निर्माण कार्य कराये जाने का उल्लेख िशलालेख में है। रानी साहिबा उपमान कुंवरि द्वारा फर्श में संगमरमर लगवाया गया है। पीथमपुर के आसपास के लोगों द्वारा और क्षेत्रीय समाजों के द्वारा अनेक मंदिरों का निर्माण कराया गया है।<ref>{{cite book |last=केशरवानी |first=प्रोफ़ेसर
== सन्दर्भ ==
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