"प्रत्यक्षवाद (राजनीतिक)": अवतरणों में अंतर
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== प्रत्यक्षवाद की अवधारणा की व्याख्या ==
प्रत्यक्षवाद की वैज्ञानिक व्याख्या सर्वप्रथम [[ऑगस्ट कॉम्टे]] ने की है। कॉम्टे ने अपनी रचनाओं ‘Course of Positive Philosophy’ (1842) में तथा
कॉम्टे ने मानवीय ज्ञान की प्रत्येक शाखा को अपनी प्रौढ़ावस्था तक पहुंचने के लिए तीन चरणों से होकर गुजरना स्वीकार किया है। कॉम्टे का कहना है कि समाज का विकास मानव बुद्धि के द्वारा ही होता है और इसकी तीन अवस्थाएं हैं-
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*(१) धर्मभीरू या मिथ्यापूर्ण अवस्था,
*(२) अधिभौतिक अवस्था तथा
*(३) वैज्ञानिक या प्रत्यक्षवादी अवस्था।
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आगे चलकर उत्तरव्यवहारवादियों ने भी राजनीति-विज्ञान में प्रत्यक्षवाद की आलोचना की है क्योंकि यह मूल्य-निरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थक है। समकालीन चिन्तन में आलोचनात्मक सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रत्यक्षवाद पर जो प्रहार हुआ है, वह ध्यान देने योग्य है। हरबर्ट मारक्यूजो का कहना है कि आज के युग में राजनीति विज्ञान की भाषा को प्राकृतिक विज्ञान की भाषा के अनुरूप ढालने की कोशिश हो रही है ताकि मनुष्य अपने सोचने के ढंग से यथास्थिति का समर्थक बन जाए।
कुछ आलोचकों का कहना है कि यदि कॉम्टे की प्रत्यक्षवाद की योजना सफल हो जाए तो वह नई तरह की पोपशाही को जन्म देगी जिसमें स्वर्ण, सुरा और सुन्दरी तीनों को जोड़कर लोगों को मौज मस्ती के लिए खुला छोड़ दिया जाएगा। इससे स्पष्ट है कि कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद ‘Laissezfaire’
उपरोक्त विवेचन से हमें यह निष्कर्ष नहीं निकालना लेना चाहिए कि कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद कोरी कल्पना या कोरा आदर्शवाद है। सत्य तो यह है कि आगे चलकर जे0 एस0 मिल जैसे विचारक भी कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद का प्रभाव पड़ा। रिचर्ड कान्ग्रीव तथा हरबर्ट स्पेन्सर जैसे विचारक भी कॉम्टे से प्रभावित हुए। कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद राजनीति-विज्ञान की एक महत्वपूर्ण विचारधारा और सिद्धान्त है। इसी कारण कॉम्टे प्रत्यक्षवाद के जनक हैं और प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त व विचारधारा के रूप में उनकी देन शाश्वत् महत्व की है जो आज भी वैज्ञानिक अध्ययन का आधार है
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