"भारत छोड़ो आन्दोलन": अवतरणों में अंतर
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स्वतंत्र आन्दोलन के इतिहास मे भारत छोड़ो आन्दोलन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस आन्दोलन में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ को झकझोर दिया और यह सिद्ध कर दिया कि अपनी स्वतंत्रता के लिए भारत वासी मर-मिटने को तैयार है।
द्वितीय विश्व युद्ध के फलस्वरुप भारतीय जनजीवन अस्त व्यस्त होता जा रहा
'''1. क्रिप्स योजना की विफलता-'''
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'''4. ब्रिटिश सरकार द्वारा 27 जुलाई की घोषणा-'''
27 जुलाई 1942 को ब्रिटिश सरकार ने लंदन से घोषणा की कि
उपर्युक्त सभी कराणों के चलते बम्बई में क्राँग्रेस कार्यकरणि की बैठक में 8 अगस्त 1942 को भारत
छोड़ो प्रस्ताव पारित प्रस्ताव पारित होने के उपरांत महात्मा गाँधी ने 70 मिनट तक जोशीला भाषण दिया उनके भाषण के संबंध में पद्दमी सिद्धा रमैया ने लिखा है कि वास्तव में उस दिन महात्मागाँधी एक अवतार और पैगम्बर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे उन्होने स्पष्ट कहा था कि मैं स्वतंत्रता के लिए और अधिक इंतेजार नहीं कर सकता मैं जीन्ना के ह्रद्य परिवर्तन की पाठ नहीं देख सकता यह मेरे जीवन का अंतिम संघर्ष है। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष करो या मरो का संघर्ष होगा। ब्रिटिश सरकार को इस आन्दोलन की भनक पहले ही मिल चुकी थी अत: वह पहले से सतर्क थी इस प्रस्ताव के शीघ्र पश्चात उसने देश के महान नेताओं को गिरफतार करना शुरु किया 9 अगस्त को गाँधी जी समेत बड़े-2 नेताओं को गिरफतार कर जेलों में बंद कर दिया गया। नेताओं की गिरफतारी से जनता क्रोधित हो उठी उनकी भावनाएँ अनियंत्रित हो गई सभी नेता जेल में बंद थे अत: उनको रोकने वाला कोई नहीं था सभी नेताओं की गिरफतारी से जनता का मार्गदर्शन करने वाला भा कोई नहीं था फलत: गुस्से में जनता ने हिंसा एवं विरोध का सहारा लिया सर्वत्र तोड़ फोड़
ब्रिटिश सरकार आंदोलन को कुचलने के लिए काफी सक्रिय थी संपूर्ण- देश में सैनिकों का जाल बिछा दिया गया जनता को गोलियों का शिकार बनाया गया संपूर्ण देश में आतंक का राज्य कायम किया गया तथपि धूप में खड़ा कर लोगों पर गोली चलाना उन्हें नंगा कर पेड़ों से उलटा लटकाना और कोड़े से पिटना औरतों के साथ अस्लील व्यवहार करना आदि अनेक तरिके जनता को आतंकित करने के लिए अपनाए गए लगभग दस हजार व्यक्ति पुलिस की गोलियों के शिकार हुए। हजारों- हजार व्यक्ति को गिरफतार किया गया गाँवों पर सामुहिक जुरमाने लगाए गए पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के अभियान में सात छात्र गोली के शिकार हुए आज भी उनकी मुर्तियाँ उनकी कुर्बानी की याद दिलाती है। इस प्रकार सरकार की दमन नीति प्रकाष्ठा पर पहुँच चुकि थी इस क्रांति में साम्यवादी दल ने देश के साथ विश्वास घात किया था उसने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया मुस्लिम लींग ने भी आंदोलन में सहयोग नहीं किया और उसने सरकारी सहायता की कुछ देशी नरेशों ने भी आंदोलन का विरोध किया था। फलत: पुर्ण समर्थन के आभाव में तथा सरकारी दमन चक्र के कारण यह क्रान्ति असफल रही और सरकार ने बर्बरता पूर्वक इसे कुचल दिया।
सरकार ने अमानुष्य व्यवहार एवं जनता के हिंसात्मक कार्यों से महात्मा गाँधी को काफी तकलीफ हुई। ब्रिटिश सरकार ने गाँधी पर अनेक झुठी आरोप लगाए सरकार का कहना था कि, उन्होनें जनता को हिंसात्मक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इससे गाँधी काफी दुखी फलत: उन्होने आत्मसुद्दी के लिए 10 फरवारी 1943 को जेल में 21 दिनों का ऐतिहासिक उपवास कायम किया उनका उपवास सफलता पूर्वक समाप्त हुआ बाद में खराब स्वास्थ के कारण 6 मई 1944 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
आन्दोलन का महत्व-
By- Mohammad Shahid (https://www.facebook.com/shahid.sta>
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