"भारतीय रंगमंच": अवतरणों में अंतर

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== वर्तमान भारतीय रंगमंच ==
आधुनिक भारतीय नाट्य साहित्य का इतिहास एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है। [[इस्लाम धर्म]] की कट्टरता के कारण नाटक को मुगल काल में उस प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिला जिस प्रकार का प्रोत्साहन अन्य कलाओं को मुगल शासकों से प्राप्त हुआ था। इस कारण मुगल काल में के दो ढाई सौ वर्षों में भारतीय परंपरा की अभिनयशालाओं अथवा प्रेक्षागारों का सर्वथा लोप हो गया। परन्तु राम लीला आदि की तरह लोक कला के माध्यम से भारतीय थिएटर जीवित रही अंग्रेजों का प्रभुत्व देश में व्याप्त होने पर उनके देश की अनेक वस्तुओं ने हमारे देश में प्रवेश किया। उनके मनोरंजन के निमित्त पाश्चात्य नाटकों का भी प्रवेश हुआ। उन लोगों ने अपने नाटकों के अभिनय के लिए यहाँ अभिनयशालाओं का संयोजन किया, जो '''थिएटर''' के नाम से अधिक विख्यात हैं। इस ढंग का पहला थिएटर, कहा जाता है, [[प्लासी का युद्ध|पलासी के युद्ध]] के बहुत पहले, [[कलकत्ता]] में बन गया था। एक दूसरा थिएटर १७९५ ई. में खुला। इसका नाम 'लेफेड फेयर' था। इसके बाद १८१२ ई. में 'एथीनियम' और दूसरे वर्ष 'चौरंगी' थिएटर खुले।
 
इस प्रकार पाश्चात्य रंगमंच के संपर्क में सबसे पहले बंगाल आया और उसने पाश्चात्य थिएटरों के अनुकरण पर अपने नाटकों के लिए रंगमंच को नया रूप दिया। दूसरी ओर [[मुंबई|बंबई]] में [[पारसी धर्म|पारसी लोगों]] ने इन विदेशी अभिनयशालाओं के अनुकरण पर भारतीय नाटकों के लिए, एक नए ढंग की अभिनयशाला को जन्म दिया। [[पारसी रंगमंच|पारसी नाटक कंपनियों]] ने रंगमंच को आकर्षक और मनोरंजक बनाकर अपने नाटक उपस्थित किए।