"मथुरा": अवतरणों में अंतर
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'''मथुरा''' [[उत्तरप्रदेश]] [[प्रान्त]] का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन [[भारतीय संस्कृति]] एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय [[धर्म]],[[दर्शन]] [[कला]] एवं [[साहित्य]] के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि [[सूरदास]], संगीत के आचार्य [[स्वामी हरिदास]], [[स्वामी दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद]] के गुरु [[स्वामी विरजानंद]], कवि [[रसखान]] आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है| मथुरा को [[श्रीकृष्ण]] जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है।
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== पर्यटन ==
[[मथुरा रेलवे स्टेशन]] काफ़ी व्यस्त जंक्शन है और [[दिल्ली]] से दक्षिण भारत या [[मुम्बई]] जाने वाली सभी ट्रेने मथुरा होकर गुजरती हैं। सडक द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। [[आगरा]] से मात्र 55 [[किलोमीटर]] तथा [[खैर प्रखण्ड (अलीगढ़)|खैर]] से मात्र 50 [[किलोमीटर]] है।
==[[होली]]==
श्रीकृष्ण राधा और गोपियों–ग्वालों के बीच की होली के रूप में गुलाल, रंग केसर की पिचकारी से ख़ूब खेलते हैं। होली का आरम्भ फाल्गुन शुक्ल 9 [[बरसाना]] से होता है। वहां की [[लट्ठमार होली]]
== मथुरा संग्रहालय [http://www.mathura-vrindavan.com/mathura/museum.htm] में मथुरा शैली की कलाकृतियाँ ==
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सन १९४७ में जब भारत का शासन सूत्र उसके अपने हाथों में आया तब से अधिकारियों का ध्यान इस सांस्कृतिक तीर्थ की उन्नति की ओर भी गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में इसकी उन्नति में अलग के धन राशि की व्यवस्था की गई और कार्य भी प्रारम्भ हुआ। सन १९५८ से कार्य की गति तीव्र हुई। पुराने भवन की छत का नवीनीकरण हुआ और साथ ही साथ सन १९३० का अधूरा बना हुआ भवन भी पूरा किया गया।
मथुरा की मूर्ति कला का प्रादुर्भाव यहाँ की लोक कला के माध्यम से सम्पन्न हुआ। लोक कला की दृष्टि से देखा जाय तो मथुरा और उसके आसपास के भाग में इसके मौर्य कालीन नमूने विधमान हैं। लोक कला से सम्बन्धित ये मूर्तियाँ 'यक्षों' की हैं। 'यक्ष' पूजा तत्कालीन लोक धर्म का एक अभिन्न अंग थी। संस्कृत, पालि और प्राकृत साहित्य में 'यक्ष' पूजा का वर्णन विषद् रूप में वर्णित है। पुराणों के अनुसार यक्षों का कार्य पापियों को विघ्न करना, उन्हें दुर्गति देना और साथ ही साथ अपने क्षेत्र का संरक्षण करना था। १
में प्रदर्शित है। मथुरा की यक्ष प्रतिमा भारतीय कला जगत में 'परखम यक्ष' के नाम से प्रसिद्ध है। शारीरिक बाल और सामर्थ्य की अभिव्यंजक प्राचीन काल की ये यक्ष प्रतिमाएँ केवल लोक कला के उदाहरण ही नहीं अपितु उत्तर काल में निर्मित बोधिसत्व, विष्णु, कुबेर, नाग आदि देव प्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरिकाएँ भी हैं।
शुंग और शक क्षत्रप काल में पहुँचते-पहुँचते मथुरा को सं.सं.-कला केन्द्र का रूप प्राप्त हो गया। जैनों का देव निर्मित स्तूप, जो आज संग्रहालय संख्या के 'कंकाली' टीले पर विराजमान था, उस काल में विधमान था। ३
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