"महात्मा रामचन्द्र वीर": अवतरणों में अंतर

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'''रामचन्द्र वीर ''' (जन्म १९०९ - मृत्यु २००९) एक लेखक, कवि तथा वक्ता और धार्मिक नेता थे। उन्होंने 'विजय पताका', 'हमारी गोमाता', 'वीर रामायण' (महाकाव्य), 'हमारा स्वास्थ्य' जैसी कई पुस्तकें लिखीं। भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन, गोरक्षा तथा अन्य विविध आन्दोलनों में कई बार जेल गये।
विराट नगर के पञ्चखंड पीठाधीश्वर [[आचार्य धर्मेन्द्र]] उनके पुत्र हैं।
 
== जीवन ==
[[चित्र:Mahatma Ramchandra veer Youth Image.jpg|thumb|महात्मा रामचन्द्र वीर]]
 
मुग़ल बादशाह [[औरंगजेब]] द्वारा हिन्दुओं पर लगाये गए 'श्मशान कर' के विरोध में अपना बलिदान देने वाले महात्मा गोपालदास इनके पूर्वज थे। कहते हैं कि [[जजिया कर]] से क्षुब्ध गोपालदास ने औरंगजेब के दरबार में पहुँच कर कृपाण से अपना पेट चीर कर देखते-देखते दरबार में ही अपने प्राण विसर्जित कर दिए थे।
 
रामचन्द्र वीर का जन्म भूरामल व विरधी देवी के घर पुरातन तीर्थ [[विराटनगर]] ([[राजस्थान]]) में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा संवत १९६६ वि. (सन १९०९) को हुआ।
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[[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer.jpg|thumb|रामचंद्र वीर ]]
 
१३ वर्ष की आयु में ही वीर का विवाह हुआ था जो बन पाया। अपने पिता और अनुयायियों के आग्रह पर वीर ने ३२ वर्ष की आयु में पुन विवाह किया। जब विवाह की बात चली तो वीर छपरा जेल में थे। विवाह हुआ तो पिता भूरामल जी भी जेल में थे और स्वयं वीर पर [[जयपुर]] राज्य की पुलिस का गिरफ़्तारी वारंट था। विवाह शिष्यों के द्वारा जन्मभूमि [[विराट नगर]] से सैंकड़ो मील दूर संपन्न हुआ। पत्नी अल्पकालीन सामीप्य के पश्चात् पिता के घर लौटी एवं वहीँ उन्होंने रामचन्द्र वीर के एकमात्र आत्मज [[आचार्य धर्मेन्द्र]] को जन्म दिया।
 
२४ अप्रैल २००९ ई० को विराटनगर (राजस्थान) में इनका निधन हुआ।
 
== योगदान ==
युवावस्था में ये पंडित रामचन्द्र शर्मा के नाम से जाने जाते थे। इन्होंने [[कोलकाता]] और [[लाहौर]] के कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लेकर स्वाधीनता के संग्राम में सक्रिय रहने का संकल्प लिया। सन 1932 में इन्होंने [[अजमेर]] के चीफ़ कमिश्नर की उपस्थिति में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध भाषण के लिये इन्हें ६ माह के लिए जेल भेज दिया गया।
[[काठियावाड़]] के मांगरोल के शासक मुहम्मद जहाँगीर ने राज्य में वे सन १९३५ में मांगरोल जा पहुंचे और गोहत्या पर प्रतिबन्ध की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया, परिणामस्वरुप शासन को झुकना पड़ा और गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
 
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रामचंद्र वीर ने सन १९३२ से ही '''गोहत्या के विरुद्ध जनजागरण''' छेड़ दिया था। इन्होंने अनेक राज्यों में गोहत्या बंदी से सम्बन्धी कानून बनाये जाने को लेकर अनेक अनशन किये. सन १९६६ में '''सर्वदलीय गोरक्षा अभियान समिति''' ने दिल्ली में व्यापक जन-आन्दोलन चलाया।
 
गोरक्षा आन्दोलन के दौरान गोहत्या तथा गोभाक्तों के नरसंहार के विरुद्ध पुरी के शंकराचार्य [[स्वामी निरंजनदेव तीर्थ]], [[संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]] व वीर जी ने अनशन किये. तब वीर जी ने भी पूरे १६६ दिन का अनशन करके संसार भर में गोरक्षा की मांग पहुँचाने में सफलता प्राप्त की थी।<ref>{{पुस्तक सन्दर्भ|last1=पोद्दार|first1=हनुमान प्रसाद|title=दिव्य सन्देश|date=2014|publisher=भारतीय साहित्य|url=https://books.google.co.in/books?id=7yDVBQAAQBAJ&lpg=PP17&ots=yIH0KqxcOI&dq=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0&pg=PP17#v=onepage&q=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0&f=false|accessdate=22 अगस्त 2015}}</ref>
 
हिन्दू हुतात्माओं का इतिहास, हमारी गोमाता, श्री रामकथामृत (महाकाव्य), हमारा स्वास्थ्य, वज्रांग वंदना समेत दर्जनों पुस्तके लिख कर साहित्य सेवा में योगदान दिया और लेखनी के माध्यम से जनजागरण किया। विजय पताका नामक पुस्तक [[अटल बिहारी वाजपेयी]] के लिये प्रेरणास्रोत बनी।<ref>{{समाचार सन्दर्भ|title=वाजपेयी बनेंगे भारत के रत्न, पढ़िए इनका सफरनामा Read more at http://www.haribhoomi.com/news/india/politics/bharat-ratna-atal-bihari-vajpayee/19254.html#SSsIiWTmTpHgcKjv.99|url=http://www.haribhoomi.com/news/india/politics/bharat-ratna-atal-bihari-vajpayee/19254.html#ad-image-0|accessdate=22 अगस्त 2015|publisher=हरिभूमि}}</ref><ref>{{समाचार सन्दर्भ|title=..अब महज इशारों में बात करते हैं अटल जी|url=http://www.jagran.com/news/national-atal-bihari-vajpayee-birthday-today-9976610.html|accessdate=22 अगस्त 2015|publisher=दैनिक जागरण}}</ref> महात्मा रामचन्द्र वीर की अन्य प्रकाशित रचनाएँ हैं - वीर का विराट् आन्दोलन, वीररत्न मंजूषा, हिन्दू नारी, हमारी गौ माता, अमर हुतात्मा, विनाश के मार्ग (1945 में रचित), ज्वलंत ज्योति, भोजन और स्वास्थ्य
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वीर जी को उनकी [[साहित्य]], [[संस्कृति]] व [[धर्म]] की सेवा के उपलक्ष्य में १३ दिसम्बर १९९८ को [[कोलकाता]] के बड़ा बाज़ार लाइब्रेरी की ओर से "भाई [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]] राष्ट्र सेवा" पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। गोरक्षा पीठाधीश्वर सांसद अवधेशनाथ जी महाराज ने उन्हें शाल व एक लाख रुपया देकर सम्मानित किया था। आचार्य [[विष्णुकांत शास्त्री]] ने उन्हें जीवित हुतात्मा बताकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया था।
 
पशुबली और गोहत्या की बंदी के लिए इन्होंने "पशुबलि निरोध समिति" और इसे बाद में "अ.भा. आदर्श हिन्दू संघ" में संगठित किया।
 
वीर [[स्वामी श्रद्धानन्द]], [[मदन मोहन मालवीय|पंडित मदन मोहन मालवीय| मदनमोहन मालवीय]], [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]], [[भाई परमानन्द]] जी, [[केशव बलिराम हेडगवार]] जी के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे।
 
उनके पशुबलि विरोधी अभियान ने विश्वकवि गुरु [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के हृदय को द्रवित कर दिया, उन्होंने ने वीर जी के इस मानवीय भावनाओ से परिपूर्ण अभियान के समर्थन में कविता लिख कर उनकी प्रशंसा की: