"महादजी शिंदे": अवतरणों में अंतर
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'''महादजी शिंदे''' (या, महादजि सिंधिया ; १७३० -- १७९४) [[मराठा साम्राज्य]] के एक शासक थे जिन्होने [[ग्वालियर]] पर शासन किया। वे सरदार रानोजी राव शिंदे के पांचवे तथा अन्तिम पुत्र थे।
शिंदे (अथवा [[सिंधिया]]) वंश के संस्थापक [[रानोजी शिंदे]] के पुत्रों में केवल महादजी [[पानीपत का तृतीय युद्ध|पानीपत के तृतीय युद्ध]] से जीवित बच सके। तदनंतर, सात वर्ष उसके उत्तराधिकार संघर्ष में बीते (१७६१-६८)। स्वाधिकार स्थापन के पश्चात् महादजी का अभूतपूर्व उत्कर्ष आरंभ हुआ (१७६८)। [[पेशवा]] के शक्तिसंवर्धन के साथ, उसने अपनी शक्ति भी सुदृढ़ की। पेशवा की ओर से [[दिल्ली]] पर अधिकार स्थापित कर (१० फरवरी, १७७१), उसने [[शाह आलम]] को मुगल सिंहासन पर बैठाया (६ जनवरी, १७७२)। इस प्रकार, पानीपत में खोए, उत्तरी भारत पर मराठा प्रभुत्व का उसने पुनर्लाभ किया। माधवराव की मृत्यु से उत्पन्न अव्यवस्था तथा उससे उत्पन्न
कुशाग्रबुद्धि महादजी व्यक्तिगत जीवन में सरल, तथा स्वभाव से सहिष्णु, धैर्यशील और उदार था। उसमें नेतृत्व शक्ति और सैनिक प्रतिभा तो थी ही, राजनीतिज्ञता भी असाधारण थी। उसके महान् कार्य, विषम परिस्थितियों तथा आंतरिक वैमनस्य - नाना फड़निस के द्वेषी स्वभाव और तुकोजी होल्कर के शत्रुतापूर्ण व्यवहार - के बावजूद केवल स्वावलंबन के बल पर संपन्न हुए। किंतु इन सब के ऊपर थी उसकी स्वार्थरहित उदात्त दृष्टि, जिसे, महाराष्ट्र के दुर्भाग्य से, सहयोग की अपेक्षा सदैव गत्यवरोध ही प्राप्त हुआ।
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