"मानवेन्द्रनाथ राय": अवतरणों में अंतर

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श्री मानवेन्द्रनाथ का जन्म [[कोलकाता]] के निकट एक गांव में हुआ था।। आपका मूल नाम नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य था, जिसे बाद में बदलकर आपने मानवेंद्र राय रखा। तत्कालीन बंगाल में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की लहर चल रही थी, ऐसे समय में राजनीतिक बोध होना स्वाभाविक है। इस प्रकार प्रारम्भिक अवस्था में ही वे राष्ट्रवादी विचारों के सम्पर्क में आए। राय के जीवनी लेखक ‘ मुंशी और दीक्षित’ के अनुसार, ‘‘राय का जीवन [[स्वामी विवेकानन्द]], [[स्वामी रामतीर्थ]] और [[स्वामी दयानन्द]] से प्रभावित रहा।’’ इन सन्तों और सुधारकों के अतिरिक्त उनके जीवन पर [[विपिन चन्द्र पाल]] और [[विनायक दामोदर सावरकर]] का अमिट प्रभाव पड़ा। शिक्षण के आरंभिक काल में ही आप क्रांतिकारी आंदोलन में रुचि लेने लगे थे। यही कारण है कि आप मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े।
 
पुलिस आपकी तलाश कर ही रही थी कि आप दक्षिण-पूर्वी एशिया की ओर निकल गए। [[जावा]] [[सुमात्रा]] से अमरीका पहुँच गए और वहाँ आतंकवादी गतिविधि का त्याग कर मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थक बन गए। उनके विचारों की यात्रा का आरम्भ [[संयुक्त राज्य अमेरिका|अमरीका]] में [[मार्क्सवाद|मार्क्सवादी विचारधारा]] से हुआ क्योंकि उस समय वे [[लेनिन]] के विचारों से प्रभावित थे। [[मैक्सिकों की क्रांति]] में आपने ऐतिहासिक योगदान किया, जिससे आपकी प्रसिद्धि अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर हो गई। आपके कार्यों से प्रभावित होकर थर्ड इंटरनेशनल में आपको आमंत्रित किया गया था और उन्हें उसके अध्यक्षमंडल में स्थान दिया गया। १९२१ में वे [[मास्को]] के प्राच्य विश्वविद्यालय के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। १९२२ से १९२८ के बीच उन्होंने कई पत्रों का संपादन किया, जिनमें 'वानगार्ड' और 'मासेज़' मुख्य थे। सन् १९२७ ई. में [[चीनी क्रांति]] के समय आपको वहाँ भेजा गया किंतु आपके स्वतंत्र विचारों से वहाँ के नेता सहमत न हो सके और मतभेद उत्पन्न हो गया। रूसी नेता इसपर आपसे क्रुद्ध हो गए और [[स्टालिन]] के राजनीतिक कोप का आपको शिकार बनना पड़ा। विदेशों में आपकी हत्या का कुचक्र चला। [[जर्मनी]] में आपको [[विष]] देने की चेष्टा की गई पर सौभाग्य से आप बच गए।
 
इधर देश में आपकी क्रांतिकारी गतिविधि के कारण आपकी अनुपस्थिति में [[कानपुर षड्यंत्र]] का मुकदमा चलाया गया। ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर आपपर कड़ी नजर रखे हुए थे, फिर भी १९३० में आप गुप्त रूप से [[भारत]] लौटने में सफल हो गए। मुंबई आकर आप डाक्टर महमूद के नाम से राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने लगे। १९३१ में आप गिरफ्तार कर लिए गए। छह वर्षों तक कारावास जीवन बिताने पर २० नवम्बर १९३६ को आप जेल से मुक्त किए गए। [[भारतीय राष्त्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] की नीतियों से आपका मतभेद हो गया था। आपने [[रेडिकल डिमोक्रेटिक पार्टी]] की स्थापना की थी। सक्रिय राजनीति से अवकाश ग्रहण कर आप जीवन के अंतिम दिनों में [[देहरादून]] में रहने लगे और यहीं २५ जनवरी १९५४, का आपका निधन हुआ।