"मृच्छकटिकम्": अवतरणों में अंतर

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'''चौथा अंक (मदनिका-शर्विलक)''' : शार्विलक चुराए हुए आभूषाण लेकर मदनिका को दासत्व से मुक्त कराने के लिए वसन्तसेना के घर पहुँचता है। चोरी की बात सुनकर मदनिका बहुत दुखी होती है। इस गलती को सुधारने की भावना से वह शार्विलक को यह समझाती है कि चोरी के आभूषाण वसन्तसेना को सौंप देने से न वह चोर रहेगा, न चारुदत्त के सिर पर ऋण रहेगा और वसन्तसेना के आभूषण उसे वापिस मिल जाएँगे, शार्विलक ऐसा ही करता है। वह वसन्तसेना से कहता है कि चारुदत्त ने यह संदेश भेजा है कि घर जर्जर होने से हम स्वर्णपात्र को सुरक्षित नहीं रख सकते, अतः आप इसे अपने पास रखें। वसन्तसेना संदेश के बदले में कुछ ले जाने की बात कहकर मदनिका को शार्विलक को सौंप देती है। इसी अंक में विदूषक वसन्तसेना से मिलकर कहता है कि स्वर्णपात्र [[जुआ|जुए]] में हार गए हैं इसलिए यह रत्नावली स्वीकार करें। वसन्तसेना वास्तविकता जानती है, पर कुछ नहीं करती। वह शाम को चारुदत्त के घर आने का निश्चय करती है।
 
'''पाँचवाँ अंक (दुर्दिन)''' : इस अंक में वर्षा-ऋतु वर्णन हुआ है। वसन्तसेना चारुदत्त से मिलती है और वर्षा की झड़ी के कारण रात उसी के घर रुक जाती है।
 
'''छठा अंक (प्रवहणविपर्यय)''' : सुबह चारुदत्त पुष्पकरण्डक उद्यान में घूमने जाता है, वसन्तसेना के लिए गाड़ी तैयार रखने का आदेष देकर ताकि वह उसमें उद्यान तक यात्रा कर सके। यहीं वसन्तसेना चारुदत्त के पुत्र रोहसेन को यह जिद करते देखती है कि वह मिट्टी की गाड़ी से नहीं स्वर्ण-शकटिका (सोने की गाड़ी) से खेलना चाहता है। वसन्तसेना सारे आभूषाण मिट्टी की गाड़ी में रखकर कहती है कि इससे सोने की गाड़ी बना लेना। वसन्तसेना चारुदत्त से उद्यान में भेंट करने निकलती है, पर भूल से उसी स्थान पर खड़ी शाकार की गाड़ी में बैठ जाती है। उधर कारागार तोड़कर, रक्षक को मारकर निकल भागा ग्वाले का बेटा आर्यक, बचाव के लिए चारुदत्त के वाहन में चढ़ जाता है। रास्ते में दो पुलिस के सिपाही- वीरक और चन्दनक वाहन देखते भी हैं, पर उनमें से एक आर्यक को रक्षा करने का वचन देकर जाने देता है।
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* [http://books.google.co.in/books?id=OYqI4-O_bQ4C&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false मृच्छकटिकम्] (गूगल पुस्तक ; लेखक - रमाशंकर त्रिपाठी; संस्कृत पाठ, भाषा टीका एवं हिन्दी अनुवाद सहित)
* [http://www.sacred-texts.com/hin/lcc/index.htm ''The Little Clay Cart'' by Shudraka, translated by Arthur William Ryder (1905).]
* [http://elearning.sol.du.ac.in/mod/book/tool/print/index.php?id=1449&chapterid=2172 मृच्छकटिक] (मुक्त शिक्षा विद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय)
* [http://dli.ernet.in/bitstream/handle/2015/463175/The-Mrichchhakatika.pdf?sequence=1&isAllowed=y The-Mrichchhakatika.pdf (41.20Mb)] (भारतीय अंकीय पुस्तकालय)