"रवीन्द्र कालिया": अवतरणों में अंतर

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| birth_date = 11 नवंबर 1939| <!-- {{birth date and age|YYYY|MM|DD}} -->
| birth_place = जालंधर
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| subject = कहानी, उपन्यास, व्यंग्य व संस्मरण <!-- or: | subjects = -->
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हिंदी साहित्य में रवींद्र कालिया की ख्याति [[उपन्यासकार]], [[कहानीकार]] और संस्मरण लेखक के अलावा एक ऐसे बेहतरीन [[संपादक]] के रूप में है, जो मृतप्राय: पत्रिकाओं में भी जान फूंक देते हैं। रवींद्र कालिया हिंदी के उन गिने-चुने संपादकों में से एक हैं, जिन्हें पाठकों की नब्ज़ और बाज़ार का खेल दोनों का पता है।
11 नवम्बर, 1939 को जालंधर में जन्मे रवीन्द्र कालिया हाल ही में [[भारतीय ज्ञानपीठ]] के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्होंने ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादन का दायित्व संभालते ही उसे हिंदी साहित्य की अनिवार्य पत्रिका बना दिया।
 
[[धर्मयुग]] में रवींद्र कालिया के योगदान से सारा साहित्य-जगत परिचित है। रवीन्द्र कालिया '''ग़ालिब छुटी शराब''' में लिखते हैं
“मोहन राकेश ने अपने मोटे चश्‍मे के भीतर से खास परिचित निगाहों से देखते हुए उनसे पूछा / ‘बम्‍बई जाओगे?' / ‘बम्बई ?' कोई गोष्‍ठी है क्‍या?' / ‘नहीं, ‘धर्मयुग' में।' / ‘धर्मयुग' एक बड़ा नाम था, सहसा विश्‍वास न हुआ। / उन्‍होंने अगले रोज़ घर पर बुलाया और मुझ से सादे काग़ज़ पर ‘धर्मयुग' के लिए एक अर्ज़ी लिखवायी और कुछ ही दिनों में नौकरी ही नहीं, दस इन्‍क्रीमेंट्‌स भी दिलवा दिये....”
 
रवीन्द्रजी ने वागर्थ, गंगा जमुना, वर्ष का प्रख्यात कथाकार [[अमरकांत]] पर एकाग्र अंक, [[मोहन राकेश]] संचयन, [[अमरकांत]] संचयन सहित अनेक पुस्तकों का संपादन किया है।
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* गालिब छुटी शराब
 
=== व्यंग्य संग्रह ===
* नींद क्यों रात भर नहीं आती
* राग मिलावट माल कौंस