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'''राधाचरण गोस्वामी''' (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५ ) [[हिन्दी]] के [[भारतेन्दु मंडल|भारतेन्दु मण्डल]] के साहित्यकार
==जीवन परिचय==
गोस्वामी जी के पिता गल्लू जी महाराज अर्थात् गुणमंजरी दास जी (1827 ई.-1890 ई.) एक भक्त कवि थे। उनमें किसी प्रकार की धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवादिता नहीं थी, प्रगतिशीलता और सामाजिक क्रान्ति की प्रज्ज्वलित चिनगारियाँ थीं। उनमें राष्ट्रवादी राजनीति की प्रखर चेतना थी।
भारतवर्ष की तत्कालीन राजनीतिक और राष्ट्रीय चेतना की नब्ज पर उनकी उँगली थी और नवजागरण की मुख्यधारा में राधाचरण गोस्वामी जी सक्रिय एवं प्रमुख भूमिका थी। उन्होने 1883 ई. में पश्चिमोत्तर और [[अवध]] में आत्मशासन की माँग की थी। मासिक पत्र ‘भारतेन्दु’ (वैशाख शुक्ल 15 विक्रम संवत् 1940 तदनुसार 22 मई 1883 ई.) में उन्होंने ‘पश्चिमोत्तर और अवध में आत्मशासन’ शीर्षक से सम्पादकीय अग्रलेख लिखा था।
गोस्वामी जी देशवासियों की सहायता से देशभाषा [[हिन्दी]] की उन्नति करना चाहते थे। देशभाषा की उन्नति के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 1882 ई. में देशभाषा की उन्नति के लिए [[अलीगढ़]] में भाषावर्धिनी सभा को अपना सक्रिय समर्थन प्रदान करते हुए कहा था,
गोस्वामी जी सामाजिक रूढ़ियों के उग्र किन्तु अहिंसक विरोधी थे। वे जो कहते थे, उस पर आचरण भी करते थे। अपने आचरण के द्वारा वे गलत सामाजिक परमपराओं का शान्तिपूर्ण विरोध करते थे।
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