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[[चित्र:Rani Durgavati.jpg|right|thumb|300px|रानी दुर्गावती का चित्र]]
'''रानी दुर्गावती''' (5 अक्टूबर, 1524 – 24 जून, 1564)) [[भारत]] की एक वीरांगना थीं जिन्होने अपने [[विवाह]] के चार वर्ष बाद अपने पति [[दलपत शाह]] की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। दुर्गावती को [[तीर]] तथा [[बन्दूक|बंदूक]] चलाने का अच्छा अभ्यास था। [[चीता|चीते]] के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी। उनके राज्य का नाम [[गढ़मंडला]] था जिसका केन्द्र [[जबलपुर]] था। वे [[इलाहाबाद]] के मुगल शासक आसफ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं।
 
==परिचय==
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रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।
 
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम [[बरेला]] है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर मे स्थित [[रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय]] भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।
 
==इन्हें भी देखें==