"लीला सेठ": अवतरणों में अंतर

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== प्रारंभिक जीवन ==
न्यायमूर्ति लीला का जन्म [[लखनऊ]] मे अक्टूबर 1930 मे हुआ। बचपन मे पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बढ़ी और मुश्किलों का सामना करती हुई उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जैसे पद तक पहुचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। भारत की पहली महिला मुख्य [[न्यायाधीश]] रही लीला ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त [[लेखक]] [[विक्रम सेठ]] की माँ हैं। [[लन्दन]] मे [[कानून]] की परीक्षा 1958 मे टॉप रहने, भारत के 15 वे विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलो मे विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है।
 
न्यायमूर्ति लीला की शादी पारिवारिक माध्यम से बाटा - कंपनी मे सर्विस करने वाले प्रेमी के साथ हुई | उस समय लीला [[स्नातक]] भी नही थी, बाद मे प्रेमो को [[इंग्लैंड]] मे नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह साथ गई और वही से [[स्नातक]] किया यहाँ उनके लिये नियमित कोलेज जाना संभव नही था सोचा कोई ऐसा कौर्स हो जिसमे हाजरी और रोज जाना जरुरी न हो इसलिये उन्होने कानून की पढ़ाई करने का मन बनाया, जहां वे बार की परीक्षा मे अवल रही।<ref>{{cite web|title=Leila Seth|url=http://www.penguinbooksindia.com/en/content/leila-seth|accessdate=1 दिसम्बर 2013|publisher=penguin india}}</ref>
== करियर ==
कुछ समय बाद पति को [[भारत]] लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आ कर वकालत करने की ठानी, यह वह समय था जब नौकरियों मे बहुत कम महिलाएँ होती थी। [[कोलकाता]] मे उन्होने वकालत की शुरुआत की लेकिन बाद मे [[पटना]] मे आ कर उन्होने वकालत शरू किया। 1959 मे उन्होने बार मे दाखिला लिया और [[पटना]] के बाद [[दिल्ली]] मे वकालत की। उन्होने वकालत के दौरान बड़ी तादात मे इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिस ड्यूटी और कस्टम संबंधी मामलो के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये। 1978 मे वे [[दिल्ली उच्च न्यायालय]] की पहली महिला [[न्यायाधीश]] बनी और बाद मे 1991 मे [[हिमाचल प्रदेश]] की पहली महिला मुख्य [[न्यायाधीश]] नियुक्त की गई। महिलाओं के साथ भेद-भाव के मामले, संयुक्त परिवार मे लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिस्सेदारी बनाने और पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जांच जैसे मामलो मे उनकी महतवपूर्ण भूमिका रही है।
 
1995 मे उन्होने पुलिस हिरासत मे हुई राजन पिलाई की मौत की जांच के लिये बनाई एक सदस्यीय आयोग की ज़िम्मेदारी संभाली। 1998 से 2000 तक वे भारतीय [[विधि आयोग]] की सदस्य रही और हिन्दू उतराधिकार कानून में संशोधन कराया जिसके तहत संयुक्त परिवार मे बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया। महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ साथ उन्होने घर परिवार की महत्वपूर्ण जिमेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई। हाल ही मे उन्होने अपनी पुस्तक '''ऑन बैलेंस'''<ref>Seth, Leila. ''On Balance''. नई दिल्ली: Viking, 2003. ISBN 0-670-04988-3</ref> के हिंदी अनुवाद '''घर और आदालत'''<ref name="पुस्तक">पुस्तक का नाम: घर और अदालत| लेखिका: लीला सेठ| प्रकाशक: पेंगुईन बुक्स|प्रकाशन वर्ष: 1 जनवरी 2010|आईएसबीएन : 9780143064299|मुखपृष्ठ : अजिल्द|अनुवादः प्रदीप तिवारी, यात्रा बुक्स, नई दिल्ली</ref> में जिंदगी की कई खट्टी- मीठी यादो और घर परिवार से जुड़े कई कडवी अनुभवों को उजागर किया है। 1992 में वे [[हिमाचल प्रदेश]] की मुख्य [[न्यायाधीश]] के पद से सेवानिवृत हुई। करियर वुमन के रूप में लीला सेठ ने पुरुष प्रधान माने जाने वाली न्यायप्रणाली में अपनी एक अलग पहचान बनाई और कई पुरानी मान्यताओं को तोड़ा। साथ ही उन्होंने परिवार और करियर के बीच गजब का संतुलन बनाए रखा।<ref>{{cite web|title=न्याय - पथ लीला सेठ (पूर्व चीफ जस्टिस)|url=http://www.aazad.com/justice-leela-seth-.html|accessdate=1 दिसम्बर 2013|publisher=आज़ाद डॉट कॉम}}</ref>
== सन्दर्भ ==
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