"वित्‍तीय प्रबंधन": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: वर्तनी एकरूपता।
छो बॉट: वर्तनी एकरूपता।
पंक्ति 1:
'''वित्तीय प्रबन्धन''' (Financial management) से आशय धन (फण्ड) के दक्ष एवं प्रभावी [[प्रबन्धन]] है ताकि [[संगठन]] के लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। वित्त प्रबन्धन का कार्य संगठन के सबसे ऊपरी प्रबन्धकों का विशिष्ट कार्य है।
 
मनुष्य द्वारा अपने जीवन काल में प्रायः दो प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है - आर्थिक क्रियायें तथा अनार्थिक क्रियाएं।
 
आर्थिक क्रियाओं के अर्न्तगत हम उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं जिनमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से धन की संलग्नता होती है जैसे रोटी, कपड़े, मकान की व्यवस्था आदि। अनार्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत पूजा-पाठ, व अन्य सामाजिक व राजनैतिक कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है।
पंक्ति 7:
जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पूँजी (capital) कहते हैं।
 
जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हेतु [[ऊर्जा]] के रूप में तेल, गैस या बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक संगठन के संचालन हेतु वित्त की आवश्यकता होती है। अतः वित्त जैसे अमूल्य तत्व का प्रबन्ध ही वित्तीय प्रबन्धन कहलाता है। व्यवसाय के लिये कितनी मात्रा में धन की आवश्यकता होगी, वह धन कहॉं से प्राप्त होगा और उपयोग संगठन में किस रूप में किया जायेगा, वित्तीय प्रबन्धक को इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने पड़ते हैं। व्यवसाय का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जन करना होता है जो दो प्रकार से किया जा सकता है।
*1. निर्मित वस्तु का मूल्य बढ़ाकर अथवा वस्तु को अत्यधिक लाभ में बेचकर
*2. निर्मित वस्तु की उत्पादन लागत घटाकर अथवा खरीदी गई वस्तु पर कम लाभ लेकर अधिक मात्रा में बिक्री करके।
पंक्ति 22:
* '''बियरमैन व स्मिथ''' (Bierman and Smith) : वित्तीय प्रबन्ध पूँजी के स्रोतों का निर्धारण करने तथा उसके अनुकूलतम उपयोग का मार्ग खोजने वाली विधि है।
 
* '''वेस्टर्न एवं जाइगम''' : वित्तीय प्रबन्धन वित्तीय निर्णयन की वह प्रक्रिया है जो व्यक्तिगत मामलों एवं उपक्रम के लक्ष्यों के मध्य मेल स्थापित करती है।
 
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वर्तमान समय में वित्तीय प्रबन्धन के अन्तर्गत कोषों को एकत्रित करने के साथ साथ नियोजन, निर्णयन, संचालन, पूॅंजी स्रोतों के निर्धारण एवं अनुकूलतम प्रयोग से घनिष्टता पूर्वक सम्बन्धित है।
पंक्ति 37:
* '''कार्य निष्पत्ति का मापक''' : किसी भी संगठन के कार्य निष्पात्ति का मापन हम वित्त के माध्यम से ही कर सकते हैं। वित्तीय निर्णयन का प्रभाव नीति निर्धारण, जोखिम की मात्रा एवं लाभदायकता पर पड़ता है। अर्थात ''‘वित्तीय निर्णयन आय की मात्रा तथा व्यावसायिक जोखिम, दोनों तत्वों को प्रभावित करते हैं। तथा इन दोनों कारकों द्वारा सामूहिक रूप से फर्म के मूल्य को निर्धारित किया जाता है।''
 
* ''' विश्लेषणात्मक एवं व्यापक स्वरूप''' : परम्परागत वित्तीय प्रबन्धन विगत अनुभव तथा अन्तप्रेरणा से प्रेरित था किन्तु आधुनिक वित्तीय प्रबंधन के अन्तर्गत सांख्यकीय आँकड़ों तथा तथ्यों के आधार पर परिस्थिति विशेष में हानि तथा लाभ का मूल्यांकन करके तदनुरूप निर्णयन द्वारा जोखिम की मात्रा को कम किया जा सकता है। वित्तीय प्रबन्धन का वर्तमान स्वरूप विश्लेषणात्मक (Analytical) है , वर्णनात्मक (Descriptive) नहींI
 
* '''सतत प्रशासनिक क्रिया''' : वित्तीय प्रबंधन के पारम्परिक स्वरूप में वित्तीय प्रबन्ध का कार्य कोषों की व्यवस्था तक सीमित था, संगठन की स्थापना के आरम्भिक चरण में अथवा पुर्नगठन, के समय में ही वित्तीय प्रबन्धन की महती भूमिका रहती थी। किन्तु वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन कार्य एक सतत प्रशासनिक प्रक्रिया है। जो व्यवसाय की स्थापना से लेकर संचालन, तथा समापन तक अनवरत जारी रहता है।
 
==वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र==
वित्तीय प्रबन्धन की पारम्परिक विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्धक का कार्य केवल वित्त प्राप्ति की व्यवस्था तक ही सीमित था किन्तु वित्तीय प्रबन्ध की विचारधारा में परिवर्तन एवं परिमार्जन के साथ ही वित्तीय प्रबन्ध के क्षेत्र में भी व्यापक परिवर्तन हुआ है। अब वित्त प्रबन्धन कोषों की व्यवस्था के साथ-साथ उपलब्ध कोषों के प्रभाव पूर्ण उपयोग (Effective Utilisation) हेतु भी उत्तरदायी होता है। अर्थात वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन, नियोजन की प्रक्रिया (process of Decision making) से घनिष्ठतापूर्वक जुड़ गया है। आधुनिक संदर्भों में वित्तीय प्रबन्धन का क्षेत्र निम्नलिखित कार्यों तक फैला हुआ है।
 
* '''वित्तीय नियोजन में सहायक''' : वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन की भूमिका वित्तीय नियोजन के क्षेत्र में अग्रणी है। इसके अर्न्तगत उद्देश्यों, नीतियों, एवं कार्यविधियों का निर्धारण, वित्तीय योजनाओं एवं पूंजी ढांचे का निर्माण आदि को सम्मिलित किया जाता है।
 
* '''वित्त प्राप्ति की व्यवस्था''' : वित्तीय प्रबन्धन का प्रमुख कार्य संगठन के प्रस्तावित पूंजी ढांचे के अनुरूप विभिन्न श्रोतों से व्यवसाय संचालन हेतु अपेक्षित पूंजी की व्यवस्था करना होता है।
पंक्ति 50:
* '''वित्त कार्य का प्रशासन''' : इसके अन्तर्गत वित्तीयप्रबन्धन द्वारा वित्त विभाग एवं उवविभागों का संगठन, कोषाध्यक्ष तथा नियंत्रक के कार्यों, दायित्वों एवं अधिकारों का निर्धारण एवं लेखा पुस्तकों के रख-रखाव की व्यवस्था की जाती है। वित्तीय प्रबन्ध सम्पत्तियों के प्रभाव पूर्ण उपयोग एवं प्रबंधन हेतु भी उत्तरदायी होता है।स्थिर सम्पत्तियों (fixed assets) के क्रय सम्बन्धी वित्तीय पहलुओं पर उचित परामर्श के साथ-साथ चल सम्पत्तियों (current assets) की समयानुकूल आपूर्ति सुनिश्चित करना भी वित्तीय प्रबन्धन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित होता है। वित्तीय नियंत्रण वित्तीय प्रशासन का प्रमुख अंग है। वित्तीय प्रबन्ध द्वारा वित्तीय नियन्त्रण के माध्यम से ही व्यावसायिक लक्ष्यों की पूर्ति (अधिकतम लाभार्जन) की जा सकती है। वित्तीय नियंत्रण की स्थापना हेतु पूॅंजीबजटिंग, रोकड़ बजट, तथा लोचपूर्ण बजटिंग नामक तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
 
* '''शुद्ध लाभ का आवंटन''' (Allocation of Net Profit) : लाभॉंश नीति का निर्धारण वित्तीय प्रबन्धक का प्रमुख कार्य होता है। शुद्ध लाभ का कितना भाग अंशधारकों के मध्य वितरित किया जाय तथा कितना भाग संचित कोषों के रूप में रोक (retain) लिया जाय, जिसका प्रयोग संगठन के विकास, सम्वर्धन एवं लाभदेयकता में वृद्धि हेतु किया जा सके। इस निर्णय का सीधा प्रभाव अंशों के भावी बाजार मूल्यों पर पड़ता है। यदि हम समस्त शुद्ध लाभ के अधिकांश भाग को अंशधारकों के मध्य विभाजन का निर्णय लेते हैं तो अल्पकाल में अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि स्वाभाविक है किन्तु संगठन के विकास की भावी योजनाओं को क्रियान्वित नहीं किया जा सकेगा, तथा दीर्घ काल में संगठन की लाभदेयकता प्रभावित हो सकती है। इसके विपरीत यदि वित्तीय प्रबंधक समस्त लाभों या लाभ के अधिकांश भाग को प्रतिधारित (retain) करता है। तो अंशों का बाजार मूल्य अत्यन्त कम हो सकता है। परिणाम स्वरूप भविष्य में पूंजी संग्रहण की कठिनाई आ सकती है अतः लाभों के आवंटन में वित्तीय प्रबन्धन की भूमिका पर संगठन का भावी विकास एवं अंशों का बाजार मूल्य प्रभावित होता है।
 
* '''विकास एवं विस्तार''' : वित्तीय प्रबन्धन संगठन के भावी विकास, एवं विस्तार हेतु भी उत्तरदायी होता है। संगठन के विकास एवं विस्तार हेतु अतिरिक्त पूंजी की लागत, स्वामित्व, नियंत्रण, जोखिम, एवं आय पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण भी वित्तीय प्रबन्धन के क्षेत्र में सम्मिलित होता है।