"विदेश मंत्रालय (भारत)": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox Government agency
|agency_name = <big>विदेश मंत्रालय</big><br><small>Ministry of External Affairs
|seal = Emblem_of_India.svg
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|seal_caption = [[भारत का प्रतीक चिन्ह]]
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|picture_caption = '''साउथ ब्लॉक''' : भारतीय विदेश मंत्रालय का मुख्यालय
|nativename_a = विदेश मंत्रालय
|formed = 2 सितम्बर 1946
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|jurisdiction = [[ भारत गणराज्य ]]
|headquarters = [[ साउथ ब्लॉक|कैबिनेट सचिवालय]]<br/> [[ रायसीना पहाड़ी ]], [[ नई दिल्ली ]]
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|minister1_pfo = [[ विदेश मंत्री (भारत)| विदेश मामलों के संघीय कैबिनेट मंत्री]]
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}}
 
'''भारत का विदेश मंत्रालय''' (MEA) विदेशों के साथ [[भारत]] के सम्बन्धों के व्यवस्थित संचालन के लिये उत्तरदायी मंत्रालय है। यह मंत्रालय [[संयुक्त राष्ट्र]] में भारत के प्रतिनिधित्व के लिये जिम्मेदार है। इसके अतिरिक्त यह अन्य मंत्रालयों, राज्य सरकारों एवं अन्य एजेन्सियों को विदेशी सरकारों या संस्थानों के साथ कार्य करते समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में सलाह देता है।
 
[[सुषमा स्वराज|श्रीमती सुषमा स्वराज]] मई २०१४ से भारत की विदेशमंत्री हैं।
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संसदीय व्यवस्था के अनुरूप विदेश नीति निर्माण का कार्य मूलतः मन्त्रिमण्डल का उत्तरदायित्व है। विदेश मन्त्री, मन्त्रिमण्डल के विचारार्थ समस्या रखता है और जब मन्त्रिमण्डल उन पर निर्णय लेता है तो ये निर्णय संसद के विचारार्थ रखे जाते हैं। यहाँ इन पर खुला विचार-विमर्श होता है। संसद की स्वीकृति के पश्चात् ही विदेश विभाग इन्हें क्रियान्वित करता है, निर्देशन विदेश मन्त्री का ही रहता है। विदेशें के समक्ष वही अपने देश का कार्यकारी प्रतिनिधि होता है। उसी की योग्यता, कुशलता, व्यक्तिगत गुणों तथा विचारों के आधार पर देश का गौरव, सम्मान व प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसी कारण उसकी नियुक्ति अथवा पद मुक्ति एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक घटना मानी जाती है। विदेश नीति के निर्माण, निर्णय प्रक्रिया तथा इसके क्रियान्वयन में उसका प्रमुख हाथ होता है। वास्तव में नीति क्रियान्यन का यह केन्द्र-बिन्दु होता है। किस देश के साथ कैसे सम्बन्ध हों, किसके साथ कौनसी सन्धि करनी है- व्यापारिक अथवा सांस्कृतिक, सैनिक अथवा राजनीतिक-आदि निर्णय वही लेता है। उसे निर्णय लेने से पूर्व कई बातों का ध्यान करना पड़ता है। उसके नीति सम्बन्धी निर्णय आर्थिक, सैनिक, भौगोलिक, राजनीतिक, गृह व अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों से आबद्ध रहते हैं। वह न तो पूर्णरूपेण आदर्शवादी और न ही अवसरवादी होता है। वह समय व परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेकर अधिकाधिक राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करता है। समय-समय पर आयोजित शिखर सम्मेलनों, संयुक्त राष्ट्र व राष्ट्रसंघ मण्डल के अधिवेशनों आदि में वही भाग लेता रहता है और अपने देश के प्रतिनिधि मण्डल को नेतृष्त्व प्रदान करता है। अपने विभाग का मार्गदर्शन तथा प्रशासनिक नियन्त्रण उसी के हाथों में होता है। विदेशों से आये प्रतिनिधि एवं शिष्ट मण्डलों अथवा अन्य अधिकारियों के साथ वार्तायें आदि भी वही करता है।
 
==उपमंत्री अथवा संयुक्त मन्त्री==
विदेश मन्त्री के कार्यभार को हल्का करने के लिये तथा उसकी सहायतार्थ एक राज्य मन्त्री उपमंत्री अथवा संयुक्त विदेश मन्त्री भी होता है। ये विदेश मन्त्रालय के कुछ भाग का कार्यभार संभालते हैं तथा विदेश मन्त्री को निणर्य लेने में परामर्श अथवा किसी विशेष विषय पर नोट तैयार कर नीति-निर्णय लेने में सहायता देते हैं।
 
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विदेश सचिव की सहायतार्थ दो सचिव विदेशी मामले १ (Secretary External Affairs I) तथा सचिव विदेश मामले २ (Secratary External Affairs II) हुआ करते थे, बाद में इन्हें सचिव (पूर्व) (Secretary East तथा सचिव (पश्चिम) (Secretary West) कहा जाने लगा।
 
विदेश विभाग 20 उप विभागों (Division) मेंं बँटा है, जिनके अध्यक्ष अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव अथवा डायरेक्टर होते हैं। ये विभाग प्रशासनिक (Administrative), प्रादेशिक (Territorial) और कार्य सम्बन्धी (Functional) होते हैं। इनकी सहायता तथा परामर्श के लिये एक [[प्रशसन तंत्र]] (Bureaucracy) परसोपानिक (hierarchical) आधार पर संगठित होता है जिसमें कार्य करने की आज्ञा ऊपर से दी जाती है, प्रशासनिक विभाग केवल प्रशासन से ही सम्बन्धित है, अतः यह नीति निर्माण प्रक्रिया में कोई योगदान नहीं देता। अन्य दो विभागों-प्रादेशिक व कार्य सम्बन्ध- द्वारा सूचनाओं को एकत्रित कर विदेश मन्त्री को परामर्श दिया जाता है। सूचनाएँ, विश्वभर में फैले भारतीय दूतावासों तथा वाणिज्य दूतावासों से प्राप्त होती हैं।
 
भारतीय विदेश मन्त्रालय के निम्नलिखित विभाग हैंः-
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भारत में गुप्त विभाग (Intelligence Bureau) गृह मन्त्रालय के नियन्त्रण में कार्य करता था। प्रतिरक्षा मन्त्रालय की सहायतार्थ 1956 में एक संयुक्त गुप्त संगठन (Joint Intelligence Organisation) की स्थापना की गई थी। इसके दो भाग चीन व पाकिस्तान सम्बन्धी सूचनायें एकत्रित करते हैं। विदेश नीति की आदर्शवादिता के कारण गुप्त विभाग अधिक योग्यता और निपुणता से कार्य नहीं कर पाया था। 1967 में विदेश गुप्त संगठन (External Intelligence Organisation) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य पड़ौसी राज्यों से सैनिक सूचनाओें की प्राप्ति था। विदेशी दूतावासों में सैनिक अताशे भी गुप्त सैनिक सूचनायें एकत्रित करके मन्त्रालय को भेजते हैं। गृह तथा प्रतिरक्षा मन्त्रालय भी विदेश मन्त्रालय की भाँति गुप्त सूचनाएँ एकत्रित करते हैं। इन विभागों के मध्य समन्वय बैठाने वाली संस्था गुप्तचर समिति (Joint Intelligence Committee) है। 1965 में इस समिति का पुनर्गठन किया गया। अब इसकी सदस्यता विदेश, गृह तथा प्रतिरक्षा मन्त्रालयों के तीन संयुक्त सचिवों, तीन सैनिक गुंप्त विभागों के अधयक्षों तथा गृह-विभाग के एक सदस्य से पूरी होती है। इसके अलावा एक निरीक्षक विभाग (Inspectorate) भी है जो एक विशेष अतिरिक्त सचिव (Additional Secretary) के नेतृत्व में कार्य करता है। इसका मूल कार्य विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों के कार्य करने की रीति और क्षमता का अनुमान लगाना तथा समय-समय पर उनका दौरा करके राजनयिक अभिकर्त्ताओं के वेतन और भत्ते आदि पर विचार करते हुए उनके बढ़ाने का परामर्श देना होता है साथ ही ये दूतावास अधिकारियों के प्रशासन, व्यय, तथा उनके कार्यों का निरीक्षण कर अपनी सरकार को प्रतिवेदन देते हैं जिनमें भारतीय विदेश दूतावासों व राजनयिक अभिकर्त्ताओं के कार्यों की उन्नति, नियमों का उचित पालन, व्यय पर नियन्त्रण आदि ये सिफारिशें करते हैं।
 
'''गुप्त वाहक व्यवस्था''' (Carries of Diplomatic Bag) के अधिकारी भी विदेश मंन्त्रालय के संगठन के ही एक भाग है। इनका मूल कार्य अपने देश अथवा दूतावास द्वारा भेजे गये दूतावास प्रेष को सुरक्षापूर्ण लाना व ले जाना है।
 
'''कल्याण विभाग विभाग''' (Welfare Unit) मन्त्रालय का कल्याण एक मुख्यालय तथा विदेश स्थित मिशनों में काम करने वाले सभी अधिकारियों के कल्याण की देखभाल करता है। एक विशेष कोष (Self Benefit Fund) में से कर्मचारियों को आवश्यकता पड़ने पर धान से सहायता की जाती है।
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'''इन्हें भी देखें - [[विश्व हिन्दी सम्मेलन]]'''
 
मन्त्रालय अपना कार्य अधिकाधिक रूप से [[हिन्दी]] में करता है। विदेशों से की गई संधियां, समझौते, संयुक्त वक्तव्यों को हिन्दी में ही लिखा व हस्ताक्षरित किया जाता है। विदेश सेवा के अधिकारियों के लिये हिन्दी में एक अल्पावधि प्रशिक्षण, मन्त्रालय के कार्यक्रम के विचाराधीन है। विदेशों में हिन्दी प्रचार का कार्य ''विदेशों में हिन्दी प्रचार की योजना'' के अन्तर्गत किया जाता है। विदेश विभाग की उप-समिति 'केन्द्रीय हिन्दी समिति’-विदेश विभाग की उप-समिति केन्द्रीय हिन्दी समिति’ विदेशी हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिये उन्हें विशेष सम्मानित करती है। इसके लिये एक विशेष समिति (Award Committee) का निर्माण किया गया है। विदेशों में भारतीय मिशनों के माध्यम से हिन्दी को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से हिन्दी अधिकारी, प्राध्यापक और आशुलिपिक भेजे गये हैं तथा मिशनों के लिये और अधिक हिन्दी में टाईपराईटर, पुस्तकें, समाचार-पत्र और पत्रिकायें भेजी जाती हैं। विदेश मन्त्री [[अटल बिहारी वाजपेयी]] ने यह भी बताया कि भारतीय मिशनों को विदेशों में भारतीय बच्चों को हिन्दी में शिक्षा देने की भी व्यवस्था है। इन्दिरा सरकार ने अक्टूबर 1980 में एक संसदीय दल को विदेशों मेंं स्थित भारतीय दूतावासों का दौरा कर वहाँ हिन्दी के प्रयोग पर प्रगति आँकने और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु भेजा था।
 
==इन्हें भी देखें==