"समावयवता": अवतरणों में अंतर

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== संरचना समावयवता ==
यदि दो यौगिकों के अणुभार और अणुसूत्र एक ही हों, पर उनके गुणों में विभिन्नता हो, तो इसका यही कारण हो सकता है कि उनके अणु की संरचनाओं में विभिन्नता है। ऐसे दो सरलतम यौगिक एथिल ऐल्कोहॉल और डाइमेथिल ईथर हैं, जिनका अणुभार तथा अणुसूत्र, C<sub>2</sub> H<sub>6</sub> O, एक ही है, पर इनके संरचनासूत्र भिन्न हैं।
 
[[एथिल ऐल्कोहॉल]] में दो कार्बन परमाणु परस्पर संबद्ध होकर, हाइड्रॉक्सील समूह से संयुक्त हैं जबकि [[डाइमेथिल ईथर]] में दो कार्बन परमाणु ऑक्सीजन परमाणु द्वारा एक दूसरे से संबद्ध हैं। दोनों के गुणों में बहुत भिन्नता है। उनकी क्रिया से विभिन्नता स्पष्ट हो जाती है। एथिल ऐल्कोहॉल पर HI की क्रिया से एथिल आयोडाइड, C<sub>2</sub> H<sub>5</sub> I, बनता है, जबकि डाइमेथिल ईथर से मेथिल आयोडाइड, (CH<sub>3</sub>I) बनता है। अन्य अभिकर्मकों के साथ भी ऐसी भिन्न क्रियाएँ होती हैं।
 
यदि ऐसे यौगिकों की समावयवता ऐसी समावयवता एक ही श्रेणी के यौगिकों के बीच हो, तो ऐसी समावयवता को '''मध्यावयवता''' (Metamerism) कहते हैं। इसका उदाहरण डाइएथिल ईथर (C<sub>2</sub>H<sub>5</sub>OC<sub>2</sub>H<sub>5</sub>) और मेथिल प्रोपिल ईथर (CH<sub>3</sub> OC<sub>3</sub> H<sub>7</sub>) है। पैराफिन श्रेणी के हाइड्रोकार्बनों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। पेंटने (C<sub>5</sub>H12) के तीन समावयव होते हैं : नार्मल पेंटेन, आइसो-पेंटेन और नियोपेंटेन।
ऐसी समावयवता को '''शृंखला समावयवता''' (Chain isomerism) भी कहते हैं, क्योंकि यहाँ शृंखला में ही अंतर होने के कारण विभिन्नता है।
 
इसी समावयवता से मिलती-जुलती एक दूसरी समावयवता है, जिसे '''स्थान-समावयवता''' (Position isomerism) कहते हैं, इसका सरलतम उदाहरण प्रोपिल क्लोराइड (CH<sub>3</sub>। CH<sub>2</sub>। CH<sub>2</sub> Cl) और आइसोप्रोपिल क्लोराइड (CH<sub>3</sub>। CHCl. CH<sub>3</sub>) है, जिनमें अंतर केवल क्लोरीन परमाणु के स्थान से संबंध रखता है। एक में क्लोरीन अंत के एक कार्बन परमाणु से संबद्ध है और दूसरे में क्लोरीन मध्य के कार्बन से संबद्ध है। इसी प्रकार की समावयवता डाइक्लोरोबेंज़ोन में भी है।
 
== त्रिविम समावयवता ==