"सामवेद संहिता": अवतरणों में अंतर
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सामवेद यद्यपि छोटा है परन्तु एक तरह से यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है। सामवेद संहिता में जो १८७५ मन्त्र हैं, उनमें से १५०४ मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। सामवेद संहिता के दो भाग हैं, आर्चिक और गान। पुराणों में जो विवरण मिलता है उससे सामवेद की एक सहस्त्र शाखाओं के होने की जानकारी मिलती है। वर्तमान में प्रपंच ह्रदय, दिव्यावदान, चरणव्युह तथा जैमिनि गृहसूत्र को देखने पर १३ शाखाओं का पता चलता है। इन तेरह में से तीन आचार्यों की शाखाएँ मिलती हैं- (१) कौमुथीय, (२) राणायनीय और (३) जैमिनीय।
== महत्व
सामवेद का महत्व इसी से पता चलता है कि गीता में कहा गया है कि -वेदानां सामवेदोऽस्मि। <ref>गीता-अ० १०, श्लोक २२</ref>। [[महाभारत]] में गीता के अतिरिक्त ''अनुशासन पर्व'' में भी सामवेद की महत्ता को दर्शाया गया है- ''सामवेदश्च वेदानां यजुषां शतरुद्रीयम्''। <ref>म०भा०, अ० १४ श्लोक ३२३</ref>।[[अग्नि पुराण]] के अनुसार सामवेद के विभिन्न मंत्रों के विधिवत जप आदि से रोग व्याधियों से मुक्त हुआ जा सकता है एवं बचा जा सकता है, तथा कामनाओं की सिद्धि हो सकती है। सामवेद ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की त्रिवेणी है। ऋषियों ने विशिष्ट मंत्रों का संकलन करके गायन की पद्धति विकसित की। अधुनिक विद्वान् भी इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं कि समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, गति, मन्त्र, स्वर-चिकित्सा, राग नृत्य मुद्रा, भाव आदि सामवेद से ही निकले हैं।
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==परंपरा==
'''शाखा''' - वेदों में सामवेद की सबसे अधिक शाखाएँ मिलती हैं - १००१ शाखाएँ।
===ब्राह्मण ग्रंथ ===
जैसा कि इसकी १००१ शाखाएँ थी इतने ही ब्राह्मण ग्रंथ भी होने चाहिएँ, पर लगभग १० ही उपलब्ध हैं - तांड्य.
== इन्हें भी देखें ==
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