"सैयद अहमद ख़ान": अवतरणों में अंतर
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{{ज्ञानसन्दूक दार्शनिक
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सर '''सैयद अहमद खान ''' ([[उर्दू]]:سید احمد خان بہا در) ([[17 अक्टूबर]] [[1817]] - [[27 मार्च]] [[1898]]) हिन्दुस्तानी शिक्षक और नेता थे जिन्होंने भारत के मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की।<ref name="जागरण">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4913403/ |title=आधुनिक शिक्षा के हिमायती थे सर सैयद अहमद |accessmonthday=[[12 मार्च]] |accessyear=12 मार्च 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण |language=[[हिन्दी]] }}</ref> उन्होने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएण्टल कालेज की स्थापना की जो बाद में विकसित होकर [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] बना। उनके
== प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा==
सैयद अहमद ख़ाँ का जन्म 17 अक्टूबर 1817 में [[दिल्ली]] के सादात (सैयद) ख़ानदान में हुआ था। उन्हे बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक़ था और उन पर [[पिता]] की तुलना में माँ का विशेष प्रभाव था। माँ के कुशल पालन पोषण और उनसे मिले संस्कारों का असर सर सैयद के बाद के दिनों में स्पष्ट दिखा, जब वह सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में आए। 22 वर्ष की अवस्था में पिता की मृत्यु के बाद परिवार को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और थोड़ी सी शिक्षा के बाद ही उन्हें आजीविका कमाने में लगना पड़ा। उन्होने 1830 ई. में [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] में लिपिक के पद पर काम करना शुरू किया, किंतु 1841 ई. में [[मैनपुरी]] में उप-न्यायाधीश की योग्यता हासिल की और विभिन्न स्थानों पर न्यायिक विभागों में काम किया। हालांकि सर्वोच्च ओहदे पर होने के बावज़ूद अपनी सारी ज़िन्दगी उन्होने फटेहाली में गुज़ारी।
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लालच दिया। यह ऐसा मौक़ा था कि वे इनके जाल में फँस सकते थे। वे धनाढ्य की ज़िन्दगी बसर कर सकते थे, लेकिन वे बहुत ही बुद्धिमान और समझदार व्यक्ति थे। उन्होने उस वक़्त लालच को बुरी बला समझकर ठुकरा दी और राष्ट्रभक्ति को अपनाना बेहतर समझा।
बाद में उन्होने यह महसूस किया कि अगर भारत के मुसलमानों को इस कोठरी से नहीं निकाला गया तो एक दिन हमारी क़ौम तबाह और बर्बाद हो जाएगी और वह कभी भी उठ न सकेगी। इसलिए उन्होंने मिस्र जाने का इरादा बदल दिया और कल्याण व अस्तित्व की मशाल लेकर अपनी क़ौम और मुल्क़ की तरफ़ बढ़ने लगे। यह सच है कि उन्होंने ग़ैर फ़ौजी अंग्रेज़ों को अपने घर में पनाह दी, लेकिन उनके समर्थक बिल्कुल न थे, बल्कि वह इस्लामी शिक्षा व संस्कृति के चाहने वाले थे। उनकी दूरदृष्टि अंग्रेज़ों के षड़यंत्र से अच्छी तरह से वाक़िफ़ थी। उन्हें मालूम था कि अंग्रेज़ी हुकूमत भारत
== संस्थाओं की स्थापना==
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*उन्होने 1906 में [[अखिल भारतीय मुस्लिम लीग]] की स्थापना की जो होने उस समय भारतीय इस्लाम का प्रमुख राष्ट्रीय केंद्र था।
*मई 1875 में उन्होने [[अलीगढ़]] में 'मदरसतुलउलूम'
== राजनीति ==
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