"हिन्दू पौराणिक कथाएँ": अवतरणों में अंतर

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हिंदू पौराणिक कथाएँ [[हिंदू धर्म|धर्म]] से संबन्धित पारंपरिक विवरणों का एक विशाल संग्र्ह् है। यह संस्कृत-महाभारत, रामायण, पुराण आदि, तमिल-[[संगम साहित्य]] एवं पेरिय पुराणम, अनेक अन्य कृतियाँ जिनमें सबसे उल्लेखनीय है। [[भागवद् पुराण]]; जिसे पंचम वेद का पद भी दिया गया है तथा दक्षिण के अन्य प्रांतीय धार्मिक साहित्य में निहित है।इनके मूल में [[स्मृति]] ग्रंथ और [[स्मार्त]] परंपरा है। यह भारतीय एवं नेपाली संस्कृति का अंग है। एकभूत विशालकाय क्रति होने की जगह यह विविध परंपराओं का मंडल है जिसे विविध संप्रदायों, व्यक्तियों, दश्न् श्रन्खला, विभिन्न प्रांतों, भिन्न कालावधि में विकसित किया गया। ऐसा आवश्यक नहीं कि इन्हें ऐतिहासिक `टनाओं का यथा शब्द्, वस्तविक विवरण होने की मान्यता सभी हिंदुओं से प्राप्त हो, पर गूढ़, अधिकाशत्:सांकेतिक अर्थयुक्त अवशय् माना गया है।<br />
वेद देवगाथाओं के मूल, जो प्राचीन हिंदू धर्म से विकसित हुए, वैदिक सभ्यता एवं वैदिक धर्म के समय से जन्में हैं। चतुर्वेदों में उनेक विषयवस्तु के लक्षण मिलतें हैं। प्राचीन वैदिक कथाओं के पात्र, उनके वि’वास तथा मूलकथा का हिंदू दर्शन् से अटूट संबंध है। वेद चार हैं यथा रिगवेद्, यजुर्वेद, अथर्ववेद व सामवेद। कुछ अवतरण ऐसी तात्विक अवधारणा तथा यंत्रों का उल्लेख करते हैं जो आधुनिक काल के वैज्ञानिक सिद्धांतों से बहुत मिलते-जुलते हैं।
== इतिहास तथा पुराण ==
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==<big>युद्ध</big>==
देव और असुरों के बीच त्रिलोक के लिए कुल 12 भीण युद्ध हुए। हिरणाक्ष्य-वराह युद्ध जिसमें हिरणाक्ष्य दिव्य सागर में मारा गया। नरसिंह-हिरण्याक’शिप युद्ध-नरसिंह ने दैत्य का वध किया।<br />
वजगपुत्र तारकासुर स्कंद द्वारा मारा गया। अंधक वध इसमें अंधकासुर ’शिव के द्वारा मारा गया।<br />
 
पंचम युद्ध में देवता जब तारकासुर के तीन पुत्रों को मारने में विफल हुए, तब ’शिव ने अपने धनु पिनाक के एक बाण से तीनों को उनके नगरों समेत ध्वस्त कर दिया।
 
अमृतमंथन-इंद ने महाबली को परास्त किया वामन अवतार धर विष्णु ने तीन पग में त्रिलोक लेकर महाबली को बंदी बनाया।
 
आठवें युद्ध में इंदz ने मारा विप्रचित्ती तथा उसके अनुचर जो अदृशय हो गए थे।
 
आदिवक युद्ध में इक्ष्वाकु राजा के पौत्र काकुशथ ने इंद्र की सहायता की और आदिवक को परास्त किया। कोलाहल युद्ध में शुक पुत्र संद एवं मर्क का वध हुआ।<br />
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कुछ अस्त्र एक सुनिशि्चत कार्य के लिए ही बने होते थे यथा - नागास्त्र जिसके उपयोग से विरोधी सेना पर कोटी-कोटी सर्पों की वृष्टि हो जाती थी। आग्नेयास्त्र विरोधी को जलाने, वरुणास्त्र अग्निशमन करने अथवा बाढ़ लाने के लिए, ब्रह्मास्त्र का प्रयोग केवल शत्रु विशेश पर ही प्राणघाती वार करने के लिए होता था। इनके अतिरिक्त अन्य दैविक उपकरणों का उल्लेख भी है जैसे कवच, कुण्डल, मुकुट, शिरस्त्राण आदि।