"हुसैन इब्न अली": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox person
| name = हुसैन इब्न अली <br> حسين بن علي
| image = Kerbela Hussein Moschee.jpg
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| caption = [[:en:Imam Husayn Shrine| इमाम हुसैन का रौज़ा]], [[ईराक]]
| birth_date = {{Circa}} {{Birth date|626|1|8|df=yes}}[[Common Era|CE]] <br> (3/4 [[शाबान]] 04 [[:en:Hijri year|AH]])<ref>{{cite book |last=Shabbar |first=S.M.R. |year=1997 |title=Story of the Holy Ka’aba |url=http://www.al-islam.org/story-of-the-holy-kaaba-and-its-people-shabbar/third-imam-husayn-ibn-%E2%80%98ali |location= |publisher=Muhammadi Trust of Great Britain |isbn= |accessdate=30 October 2013 }}</ref>
| honorific_suffix = {{small|[[:en:List of Ismaili Imams|द्वितीय]] इमाम [[:en:Ismailism|इस्माइली]] [[शिया इस्लाम|शिया]] <br />
[[:en:List of Imams|तृतीय]] [[:en:Imamah (Shia doctrine)|इमाम]] - [[:en:Sevener|सप्त]], [[:en:Twelver|इसना अशरी]], और [[:en:Zaydi|ज़ैदी]] [[शिया इस्लाम]]}}
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| death_date = {{Circa}} {{Death date and age|680|10|10|626|1|8|df=yes}} <br> (10 Muharram 61 AH)
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| death_cause = [[कर्बला की लड़ाई]] में शहीद हुए
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| title = {{Collapsible list|titlestyle=font-weight:normal; background:transparent; text-align:left;|title=||ash-Shahīd<ref name="qarashi58">{{cite book |last=al-Qarashi |first=Baqir Shareef |title=The life of Imam Husain |year=2007 |publisher=Ansariyan Publications |location=Qum |page=58}}</ref><br><small>([[Arabic language|Arabic]] for Father of Freedom)</small><br><small>([[Arabic language|Arabic]] for The Martyr)</small>||as-Sibt<ref name="qarashi58"/><small><br>(Arabic for The Grandson)</small>|Sayyidu Shabābi Ahlil Jannah<ref name="qarashi58"/><ref>Tirmidhi, Vol. II, p. 221 ; تاريخ الخلفاء، ص189 [History of the Caliphs]</ref><br><small>(Arabic for Leader of the Youth of Paradise)</small>|ar-Rashīd<ref name="qarashi58"/><small><br>(Arabic for The Rightly Guided)</small>|at-Tābi li Mardhātillāh<ref name="qarashi58"/><small><br>(Arabic for The Follower of Gods Will)</small>|al-Mubārak<ref name="qarashi58"/><small><br>(Arabic for The Blessed)</small>|at-Tayyib<ref name="qarashi58"/><br><small>(Arabic for The Pure)</small>|Sayyidush Shuhadā<ref name="history95">{{cite book |title=A Brief History of The Fourteen Infallibles |year=2004 |publisher=Ansariyan Publications |location=Qum |page=95}}</ref><ref>{{cite book |title=Kitab al-Irshad |page=198}}</ref><small><br>(Arabic for Master of the Martyrs)</small>|al-Wafī<ref name="qarashi58"/><small><br>(Arabic for The Loyal)</small>|Üçüncü Ali <br /> <small>([[Turkish language|Turkish]] for Third Ali)</small>}}
| term = 670 – 680 CE
| predecessor = [[हसन|हसन इब्न अली]]
| successor = [[:en:Ali ibn Husayn Zayn al-Abidin|अली इब्न हुसैन जैन अल-आबिदीन]]
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| parents = [[अली इब्न अबू तालिब]] <br> [[फ़ातिमा ज़हरा]]
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'''इमाम हुसैन''' (''अल हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब'', यानि अबी तालिब के पोते और अली के बेटे अल हुसैन, [[626]] AH -[[680]] AH) अली अ० के दूसरे बेटे थे और इस कारण से पैग़म्बर [[मुहम्मद]] के नाती। आपका जन्म [[मक्का]] में हुआ। आपकी माता का नाम [[फ़ातिमा ज़हरा]] था |
 
इमाम हुसैन को इस्लाम में एक शहीद का दर्ज़ा प्राप्त है। शिया मान्यता के अनुसार वे [[यज़ीद प्रथम]] के कुकर्मी शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए सन् 680 AH में कुफ़ा के निकट [[कर्बला की लड़ाई]] में शहीद कर दिए गए थे। उनकी शहादत के दिन को आशूरा (दसवाँ दिन) कहते हैं और इस शहादत की याद में [[मुहर्रम]] (उस महीने का नाम) मनाते हैं।
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== जीवन ==
 
हुसैन अलैहिस्स्लाम का जन्म ३/४ शाबान हिजरी को पवित्र शहर मदीनेमें हुआ था।उनके पिता का नाम अली तथा माता का नाम फातिमा ज़हरा था| आप अपने माता पिता की द्वितीय सन्तान थे | इतिहासकार मसूदी ने उल्लेख किया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम छः वर्ष की आयु तक हज़रत पैगम्बर(स.) के साथ रहे।
 
[[मुहम्मद]] (स.अ.व्.) साहब को अपने नातियों से बहुत प्यार था पैगम्बर(स.) के इस प्रसिद्ध कथन का शिया व सुन्नी दोनो सम्प्रदायों के विद्वानो ने उल्लेख किया है। कि पैगम्बर(स.) ने कहा कि "हुसैन मुझसे हैऔर मैं हुसैन से हूँ। अल्लाह तू उससे प्रेम कर जो हुसैन से प्रेम करे।"
 
[[मुआविया]] ने अली अ० से खिलाफ़त के लिए लड़ाई लड़ी थी। [[अली]] के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र [[हसन]]अ० को खलीफ़ा बनना था। मुआविया को ये बात पसन्द नहीं थी। वो हसन अलैहिस्स्लाम से संघर्ष कर खिलाफ़त की गद्दी चाहता था। हसन अलैहिस्स्लाम ने इस शर्त पर कि वो मुआविया की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे, मुआविया को हुकुमत दे दी। लेकिन इतने पर भी मुआविया प्रसन्न नहीं रहा और अंततः उसने हसन अलैहिस्स्लाम को ज़हर पिलवाकर शहीद कर डाला।सन् पचास (50) हिजरी में उनकी शहादत के पश्चात दस वर्षों तक घटित होने वाली घटनाओं का अवलोकन करते हुए मुआविया का विरोध करते रहे। जब सन् साठ (60) हिजरी में मुआविया का देहान्त हो गया , व उसके बेटे यज़ीद ने गद्दी पर बैठने के बाद हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बैअत (आधीनता स्वीकार करना) करने के लिए कहा, तो आपने बैअत करने से मना कर दिया।और इस्लामकी रक्षा हेतु वीरता पूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गये। मुआविया से हुई संधि के मुताबिक,मुआविया के मरने बाद हसन अलैहिस्स्लाम के पास फिर उनके छोटे भाई हुसैन अलैहिस्स्लाम खलीफ़ा बनेंगे पर मुआविया को ये भी पसन्द नहीं आया। उसने हुसैन अलैहिस्स्लाम को खिलाफ़त देने से मना कर दिया। इसके दस साल की अवधि के आखिरी 6 महीने पहले मुआविया की मृत्यु हो गई। शर्त के मुताबिक मुआविया की कोई संतान खिलाफत की हकदार नहीं होगी, फ़िर भी उसने अपने बेटे को [[याज़िद प्रथम]] खलीफ़ा बना दिया और इमाम हुसैन अलैहिस्स्लाम से बेयत मागने लगा जिस पर हुसैन अलैहिस्स्लाम ने कहा "मेरे जेसा तुझ जेसे कि बेयत कभी नही कर सकता"। सन् ६१ हिजरी 680 ई० में वे करबला के मैदान में अपने अनुचरों सहित, कुफ़ा के सूबेदार की सेना के द्वारा शहीद कर दिए गए
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध क़ियाम (किसी के विरूद्ध उठ खड़ा होना) किया। उन्होने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को अपने प्रवचनो में इस प्रकार स्पष्ट किया कि----
 
# जब शासकीय यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीना छोड़ने पर मजबूर हो गये तो उन्होने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को इस प्रकार स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय जीवन यापन करने या उपद्रव फैलाने के लिए क़ियाम नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम) की उम्मत (इस्लामी समाज) में सुधार हेतु जारहा हूँ। तथा मेरा निश्चय मनुष्यों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने पिता इमाम अली अलैहिस्सलाम की सुन्नत(शैली) पर चलूँगा।
# एक दूसरे अवसर पर कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह शासकीय शत्रुत या सांसारिक मोहमाया के कारण नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे धर्म की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए। तथा तेरी प्रजा के मध्य सुधार करें ताकि तेरी प्रजा अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे धर्म के सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके।
# जब आप की भेंट हुर पुत्र यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो, आपने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह कार्य अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए बहुत अच्छा है। ख़िलाफ़त पद के अन्य अत्याचारी व व्याभीचारी दावेदारों की अपेक्षा हम अहलेबैत सबसे अधिक अधिकारी हैं।
# एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत शासन के उन लोगों से अधिक अधिकारी हैं जो शासन कर रहे है।
इस्लाम में इस दिन (मुहर्रम मास की 10वीं तारीख़) को बहुत पवित्र माना जाता है और [[ईरान]], [[इराक़]], [[पाकिस्तान]], [[भारत]], [[बहरीन]], [[जमैका]] सहित कई देशों में इस दिन सरकारी छुट्टियाँ दी जाती हैं।