"प्रकाश का वेग": अवतरणों में अंतर

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पृथ्वी सूर्य के चारों ओर प्राय: 18.5 मील प्रति सेकंड के वेग से घूमतल है। अतएव जब हम दूरबीन द्वारा किसी तारे को देखना चाहते हैं तब उसे सीधे तारे की ओर न रखकर, पृथ्वी की दिशा में कुछ झुकाना पड़ता है। यह प्रेक्षित दिशा यथार्थ दिशा नहीं होती है। इन दोनों दिशाओं के बीच के कोण को अपेरण कोण कहते हैं। इस कोण का मान एवं पृथ्वी का गमन वेग मालूम किया जाता है।
 
1725 ई. में ब्रैडले ने g-ड्रेकोनिस तारे का अध्ययन कर प्रकाशवेग का मान 2.99,855ल् 120 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला। आपेक्षिकता सिद्धांत का जन्म होने में इस विधि का कुछ हाथ है।
 
== पार्थिव विधियाँ ==
[[चित्र:Fizeau.JPG|right|thumb|300px|फीजो का उपकरण]]
; फीज़ो (Fizeau) की दंतुरचक्र विधि :
1849 में एच. एल. फीजो ने सर्वप्रथम केवल पार्थिव उपकरणों से प्रकाशवेग को मालूम किया। फीज़ो ने प्रकाशवेग का मान 3,15,300.500 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला। इसी विधि से कॉर्नु (Cornu) ने 1875 ई. में प्रकाशवेग 3,00,400 किमी.किलोमीटर प्रति सेंकंड एवं 1906 ई. में पैराटिन ने 2,99,880.84 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।
 
; फूको की घूर्ण-दर्पण-विधि :
दंतुरचक्र के स्थान पर फूको ने वेग से घूमनेवाले दर्पण का उपयोग किया। 1962 ई. में फूको ने प्रकाश वेग (c) का मान 2,98,009.500 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला। सन् 1878-82 के बीच माइकेलसन (Michelson) ने इसी प्रयोग द्वारा वेग का मान 2,99,828 किमी.किलोमीटर प्रति सेंकंड निकाला तथा साइमन न्यूकम (Simon Newcomb) ने 2,99,778।
 
; माइकेलसन की अष्टकोण दर्पण विधि :
सन् 1926 में किया गया हय प्रयोग अपनी यथार्थता के लिये प्रसिद्ध है। 22 मील दूरी पर पहाड़ की चोटी पर स्थित, माउंट विलसन तथा माउंट सेंट ऐंटोनियो को माइकेलसन ने अपने प्रयोग के लिये निर्धारित किया।
 
पौज़े एवं पीअरसन ने 1935 ई. में उपर्युक्त प्रयोग को निर्वात में दुहराया। उनके उपकरण एक मील लंबे नल में स्थित थे। अष्टकोण के स्थान पर इन्होंने 32 तलवाले दर्पण का उपयोग किया। उनके प्रकाशवेग का मान 2,99,774.11 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकला।
 
== वैद्युत-प्रकाशिक विधियाँ ==
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घूमनेवाले दंतुरचक्र जैसा ही कर सेल एक वैद्युत प्रकाशिक कपाठ है। कर सेल में एक काँच के पात्र में धातु की दो समांतर पट्टियों के बीच में नाइट्रोबेंजीन द्रव भरते हैं। इसके दोनों ओर दो निकल (nicol) प्रिज्म इस स्थिति में रखते हैं कि सेल में से किरणें निकल नहीं सकती। किंतु यदि पहियों पर वैद्युत विभव लगाया जाए, तो द्रव में द्विवर्तन उत्पन्न होगा और अब निकल में से प्रकाश आ सकेगा। यदि उच्च आवृत्तिवाला वैद्युत विभव लगाया जाय, तो सेल प्रकाश को अधिकतम विभव पर जाने देगा और शून्य विभव पर रोक देगा। यदि प्रत्यावर्ती क्षेत्र की आवृत्ति 108 हो तो 2' 108 बार प्रति सेकंड प्रकाश रुकेगा एवं जा सकेगा।
 
सन् 1926 ई. में कारोलुस (Karolus) एवं मिटलस्टैट (Mittelstaedt) ने इस कर सैल का उपयोग प्रकाश का वेग निकालने में किया। दोनों सेलों में वही प्रत्यावर्ती क्षेत्र लगाया गया है। इनके प्रकाशवेग का मान 2,99778.20 किमी.किलोमीटर प्रति सेंकंड था।
 
ऐंडरसन (Anderson) ने सन् 1936-41 में उपर्युक्त प्रयोग में सुधार कर इसे 3,000 बार दुहराया। इनके अनुसार प्रकाशवेग का औसत मान 2,99776ल् 4 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकला। वर्गस्ट्रैंड ने भी (1949-51) इसी विधि का उपयोग कर प्रकाशवेग का मान 2,99,793.13 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।
 
;चाप वैद्युत दोलक विधि :
यदि क्वार्ट्ज को दो निकलों के बीच में रखकर उसपर प्रत्यावर्ती विद्युत क्षेत्र लगाया जाए, तो वह भी कर सैल जैसा कार्य करता है। यह बात कर और ग्रांट ने सन् 1927 में बताई। सन् 1938 में मैक किन्ले ने इसका उपयोग कर प्रकाशवेग का मान 2,99,780.70 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।
 
लुविग बर्गमैन ने 1937 ई. में बताया कि यदि क्वार्ट्ज पर उच्च आवृत्तिवाले प्रत्यावर्ती क्षेत्र को लगाया जाए, तो उसमें भी उच्च आवृत्तिवाले प्रत्यावर्ती क्षेत्र को लगाया जाए, तो उसमें भी उच्च आवृत्तिवाले दोलन उत्पन्न हो जाते हैं। उनमें बराबर दूरी पर निस्पंद तल बन जाते हैं उनमें बराबर दूरी पर निस्पंद तल बन जाते हैं और क्वार्ट्ज पट्टिका ग्रेटिंग बन जाती है। जब क्षेत्र उच्च होता है तब ग्रेटिंग बनती है और क्षेत्र शून्य होने पर वह नष्ट हो जाती है।
 
क्वार्ट्ज के उपर्युक्त गुण का उपयोग हाउस्टन ने 1941 एवं 1950 ई. में प्रकाशवेग निकालने के काम में किया। हाउस्टन ने प्रकाशवेग का मान 2,99,775.9 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।
 
== वैद्युत विधियाँ ==
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(2) '''स्थावर तरंगों का तारों पर बनाना''' : विद्युच्चुंबकीय तरंगों की स्थावर तरंगें दो समांतर तारों पर बनाई जाती हैं। निस्पंद तलों के बीच की दूरी ज्ञात कर तरंगदैर्ध्य मालूम किया जाता है। फिर आवृत्तिकाल मालूम कर वेग मालूम हो जाता है। इस विधि से ब्लोंडेट तथा लेचर ने प्रकाशवेग का मान निकाला।
 
(3) '''कैविटी रेजोनेटर (Cavity Resonator)''' : इसकी मदद से 1947 ई. में अकाशवेग का मान 2,99,792 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकला। इसेन ने विधि को सुधार कर इस मान को 2,99,792.5 बताया। हन्सेन और बोल ने 1950 ई. में बहुत ही यथार्थ रूप से इस मान को 2,99,789.6 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।
 
(4) '''सूक्ष्म दैर्ध्य व्यतिकरणी''' : सन् 1950 में फ्रूम ने रेडार तरंगों की सहायता से प्रकाशवेग का मान 2,99,792.6ल् 0.7 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला और फिर सन् 1954 में इस मान को बदलकर 2,99,793.7 बताया।
 
ओबौ और शौरन व्यवस्था का उपयोग दूरी नापने के लिये किया गया। 1947 ई. में जोन ने तथा 1949 और 1954 ई. में अलाक्सन ने इस विधि द्वारा प्रकाशवेग का मान 2,99,794.2 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।
 
(5) '''घूर्णन स्पेक्ट्रम''' : इसकी सहायता से आर्वाचीन काल में, अर्थात् सन् 1955 में, प्लायर, ब्लैन व कोनर ने मिलकर प्रकाशवेग का मान 2,99,789.8 किमी.किलोमीटर प्रति सेंकंड निकाला।
 
इस प्रकार इन सब विधियों से निकाले हुए प्रकाशवेग के मानों का अध्ययन कर हम कह सकते हैं कि सबसे यथार्थ प्रकाशवेग मान 2,99,793.0 किमी.किलोमीटर प्रति सेकंड है।
 
==तात्पर्यटीका में प्रकाश का वेग==