"मुज़फ़्फ़रनगर": अवतरणों में अंतर

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शहर से छह किलोमीटर दूर सहारनपुर रोड़ पर काली नदी के ऊपर बना बावन दरा पुल, करीब 1512 ईस्वी में शेरशह सूरी ने बनवाया था। शेरशाह सूरी उस समय मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। उसने सेना के लश्कर के आने जाने के लिये सड़क का निर्माण कराया था जो बाद में ग्रांट ट्रंक रोड़ के नाम विख्यात हुई। इसी मार्ग पर बावन दर्रा पुल है। माना जाता है कि इसे इसे उस समय इस प्रकार डिजाईन किया गया था कि यदि काली नदी में भीषण बाढ़ आ जाये तो भी पानी पुल के किनारे पार न कर सके। पुल में कुल मिला कर 52 दर्रे बनाये गये हैं। जर्जर हो जाने के कारण अब इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा है। वहलना गांव में शेरशाह सूरी की सेना के पड़ाव के लिये गढ़ी बनायी गई थी। इस गढ़ी का लखौरी ईटों का बना गेट अभी भी मौजूद है।
 
ग्राम गढ़ी मुझेड़ा में स्थित सैयद महमूद अली खां की मजार मुगलकाल की कारीगरी की मिसाल है। 400 साल पुरानी मजार और गांव स्थित बाय के कुआं की देखरेख पुरातत्व विभाग करता है। मुगल समा्रट औरगजेब की मौत के बाद दिल्ली की गद्दी पर जब मुगल साम्राज्य की देखरेख करने वाला कोई शासक नहंीनही बचा तो जानसठ के सैयद बन्धु उस समय नामचीन हस्ती माने जाते थे। उनकी मर्जी के बिना दिल्ली की गद्दी पर कोई शासक नहंीनही बैठ सकता था। जहांदार शाह तथा मौहम्मद शाह रंगीला को सैयद बंधुओं ने ही दिल्ली का शासक बनाया था। इन्ही सैयद बंधुओं मे से एक का नाम सैयद महमूद खां था। उन्हीं की मजार गा्रम गढ़ीमुझेड़ासादातगढ़ी मुझेड़ा सादात में स्थित हैं। जिसमें मुगल करीगरी की दिखाई पड़ती है। 400 साल पुरानी उक्त सैयद महमूद अली खां की मजार तथा प्राचीन बाय के कुयेंं के सम्बन्ध में किदवदन्ती है कि दोनो का निर्माण कारीगरों द्वारा एक ही रात में किया गया था।था ! एंव जानसठ निवासी इस्लामी अत्याधमिक गुरू हजरत मौलाना नजीर अहमद कासमी जी भी यहीं से ताल्लुक रखते है जिन्हे सन 2013 में समाजवादी सरकार में माननीय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने सरकारी चार्टेड विमान भेजकर लखनऊ अपने आवास पर बुलाकर मुलाकात की मौलाना नजीर अहमद कासमी के खादिम ओर विस्वसनीय रहे है मौ० अहसान मौहल्ला गंज जानसठ ?
 
लम्बेबारे समयमें तकअक्सर मुगलमौलाना उनकी ईमानदारी की काफी चर्चा करते है ? आधिपत्य में रहने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1826 में मुज़फ़्फ़र नगर को जिला बना दिया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शामली के मोहर सिंह और थानाभवन के सैयद-पठानों ने अंगेजों को हरा कर शामली तहसिल पर कब्जा कर लिया था परन्तु अंग्रेजों ने क्रूरता से विद्रोह का दमन कर शामली को वापिस हासिल कर लिया।
 
6 अप्रैल 1919 को डॉ॰ बाबू राम गर्ग, उगर सेन, केशव गुप्त आदि के नेतृत्व में इण्डियन नेशनल कांगेस का कार्यालय खोला गया और पण्डित मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, सरोजनी नायडू, सुभाष चन्द्र बोस आदि नेताओं ने समय-समय पर मुज़फ़्फ़र नगर का भ्रमण किया। खतौली के पण्डित सुन्दर लाल, लाला हरदयाल, शान्ति नारायण आदि बुद्धिजीवियों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने पर केशव गुप्त के निवास पर तिरंगा फ़हराने का कार्यक्रम रखा गया।मुजफ्फरनगर से दो किमोमीटर दूर एक गाँव हैं मुस्तफाबाद और इसके साथ लगा गाँव हैं पचेंडा , कहते हैं यह पचेंडा गाव महाभारत काल में कौरव पांडव की सेना का पड़ाव स्थल था , मुस्तफाबाद के पश्चिम में पंडावली नामक टीला हैं जहां पांडव की सेना पडी हुई थी तथा पूर्व में कुरावली हैं जहां कौरव की सेना डेरा डाले पडी थी , पचेंडा में एक महाभारतकालीन भेरो का मंदिर और देवी का स्थल भी हैं
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* मुजफ़्फ़र नगर जिले के भोपा के पास यूसूफ़पुर गांव के रमेश चन्द धीमान ने 3.12 मिली मीटर की कैंची और 4.50 मिली मीटर का रेजर बना कर गिनीज बुक और लिमका बुक में अपना नाम लिखा मुजफ़्फ़र नगर या।
 
* मुगलकालीन किंग "मेकर" सैयद बन्धु जानसठ इलाके से ताल्लुक रखते थे। जानसठ के ही इस्लामिक अत्याधमिक गुरू मौलाना नजीर अहमद कासमी ओर उनके खादिम मौ० अहसान ?
 
* 1952 में मुजफ़्फ़र नगर में पहली बार स्वतंत्र गणतंत्र के चुनाव हुए और उत्तरी मुजफ़्फ़र नगर से कांग्रेस के अजीत प्रसाद जैन और दक्षिणी मुजफ़्फ़र नगर से कांग्रेस के हीरा बल्लभ त्रीपाठी चुने गये।गये।गये
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* स्व0 मुनव्वर हसन - संसद सदस्य कैराना (जन्म तिथि - 15 मई 1964) अपने 14 वर्ष के राजनितिक कार्यकाल में (1991-2005) 6 बार भारत के 4 सदनों विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्य रहे।