"सुदामा": अवतरणों में अंतर

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श्री '''सुदामा''' जी भगवन श्री कृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे | वे समस्त वेद-पुराणों के ज्ञाता और विद्वान् ब्राह्मण थे| श्री कृष्ण से उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में हुई | सुदामा जी अपना जीवन यापन ब्राह्मण रीति के अनुसार भिक्षा मांग कर करते थे | वे एक निर्धन ब्राह्मण थे तथा भिक्षा के द्वारा कभी उनके परिवार (पत्नी तथा बच्चे) का पेट भरता तो कभी भूखे ही सोना पड़ता था| परन्तु फिर भी सुदामा इतने में ही संतुष्ट रहते और हरि भजन करते रहते | बाद में वे अपनी पत्नी के कहने पर सहायता के लिए द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के पास गए | परन्तु संकोचवश उन्होंने अपने मुख से श्री कृष्ण से कुछ नहीं माँगा | परन्तु श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी हैं, उन्होंने भी सुदामा को खली हाथ ही विदा कर दिया | जब सुदामा जी अपने नगर पहुंचे तो उन्होंने पाया की उनकी टूटी-फूटी झोपडी के स्थान पर सुन्दर महल बना हुआ है तथा उनकी पत्नी और बच्चे सुन्दर, सजे-धजे वस्त्रो में सुशोभित हो रहे है| इस प्रकार श्री कृष्ण ने सुदामा जी की निर्धनता का हरण किया |