"नामदेव": अवतरणों में अंतर

49.207.51.198 (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 3384487 को पूर्ववत किया
0
पंक्ति 14:
'''श्री नामदेव जी''' भारत के प्रसिद्ध संत हैं। विश्व भर में उनकी पहचान '''"संत शिरोमणि"''' के रूप में जानी जाती है. इनके समय में नाथ और महानुभाव पंथों का महाराष्ट्र में प्रचार था।
 
'''संत शिरोमणि श्री नामदेवजी''' का जन्म "पंढरपुर", मराठवाड़ा, महाराष्ट्र (भारत) में "26 अक्टूबर, 1270 , कार्तिक शुक्ल एकादशी संवत् १३२७, रविवार" को सूर्योदय के समय हुआ था. महाराष्ट्र के सातारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसा "नरसी बामणी गाँव, जिला परभणी उनका पैतृक गांव है." संत शिरोमणि श्री नामदेव जी का जन्म "शिम्पी" (मराठी) , जिसे राजस्थान में "छीपा" भी कहते है, परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दामाशेठ और माता का नाम गोणाई (गोणा बाई) था। इनका परिवार भगवान विट्ठल का परम भक्त था। नामदेवजी का विवाह कल्याण निवासी राजाई (राजा बाई) के साथ हुआ था और इनके चार पुत्र व पुत्रवधु यथा '''"नारायण - लाड़ाबाई", "विट्ठल - गोडाबाई", "महादेव - येसाबाई" , व "गोविन्द - साखराबाई" तथा एक पुत्री थी जिनका नाम लिम्बाबाई''' था. श्री नामदेव जी की बड़ी बहन का नाम '''आऊबाई''' था. उनके एक पौत्र का नाम '''मुकुन्द''' व उनकी दासी का नाम '''"संत जनाबाई"''' था, जो संत नामदेवजी के जन्म के पहले से ही दामाशेठ के घर पर ही रहती थी. संत शिरोमणि श्री नामदेवजी के नानाजी का नाम '''गोमाजी''' और नानीजी का नाम '''उमाबाई''' था.
 
'''संत नामदेवजी''' ने '''विसोबा खेचर''' को गुरु के रूप में स्वीकार किया था। विसोबा खेचर का जन्म स्थान पैठण था, जो पंढरपुर से पचास कोस दूर "ओंढ्या नागनाथ" नामक प्राचीन शिव क्षेत्र में हैं. इसी मंदिर में इन्होंने संत शिरोमणि श्री नामदेवजी को शिक्षा दी और अपना शिष्य बनाया। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे और उम्र में उनसे 5 साल बड़े थे। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, संत निवृत्तिनाथ, संत सोपानदेव इनकी बहिन बहिन मुक्ताबाई व अन्य समकालीन संतों के साथ पूरे महाराष्ट्र के साथ उत्तर भारत का भ्रमण कर '''"अभंग"(भक्ति-गीत)''' रचे और जनता जनार्दन को समता और प्रभु-भक्ति का पाठ पढ़ाया। संत ज्ञानेश्वर के परलोकगमन के बाद दूसरे साथी संतों के साथ इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। इन्होंने मराठी के साथ साथ हिन्दी में भी रचनाएँ लिखीं। इन्होंने अठारह वर्षो तक पंजाब में भगवन्नाम का प्रचार किया। अभी भी इनकी कुछ रचनाएँ सिक्खों की धार्मिक पुस्तक " गुरू ग्रंथ साहिब" में मिलती हैं . इसमें संत नामदेवजी के 61पद संग्रहित हैं। आज भी इनके रचित अभंग पूरे महाराष्ट्र में भक्ति और प्रेम के साथ गाए जाते हैं। ये संवत १४०७ में समाधि में लीन हो गए।