"नामदेव": अवतरणों में अंतर

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संत नामदेव जी की यात्रायों के समय उनके साथ श्री निवृत्तिनाथ , श्री सोपानदेव, श्री ज्ञानेश्वर , बहिन मुक्ताबाई , श्री चोखा मेला (नामदेवजी के शिष्य - जाती से धेड़ - गांव मंगलवेढा), सांवता माली (गांव - आरण मेंढी), नरहरि सुनार (गांव - पंढरपुर) थे. संत शिरोमणि के प्रधान शिष्यो में संत जनाबाई (जो दामाशेठ के घर सेविका थी), परिसा भागवत (जिन्होंने प्रथम दीक्षा ग्रहण की थी), चोखामेला, केशव कलाधारी, लड्ढा, बोहरदास , जल्लो, विष्णुस्वामी, त्रिलोचन आदि थे , जिनके सामीप्य में उनके जीवन काल में भक्ति रस की सरिता बह निकली, जो आज भी अनवरत जारी है.
 
संत नामदेवजी घुमान (पंजाब) प्रवास के समय अपनी मण्डली के साथ मारवाड़ जंक्शन के पास '''"बारसा"''' गांव स्थित कृष्ण मंदिर, भगवान जगमोहनजी के मंदिर में रात्रि विश्राम के लिए रुके थे. जहां संत मंडली ने रात में विट्ठल का कीर्तन शुरू किया था. संत नामदेव अपने प्रभू श्री विट्ठल के साथ इस कदर कीर्तन में तल्लीन हो गए कि कब भौर हुई पता ही नहीं चला. प्रातःकाल मंदिर के ब्राह्मण पुजारी पूजा के लिए मंदिर प्रवेश कर रहे तो उन्हें पता चला कि कोई मराठी संत मंदिर के अहाते में नाच रहा हैं. मंदिर प्रवेश के लिए रास्ता नहीं मिला तो पुजारी ने गुस्से से नामदेव जी को प्रताडित कर मंदिर के पीछे जाकर अपना कीर्तन करने का आदेश दे दिया तो वे मंदिर के पीछे बैठकर दुःखी व अपमानित महसूस कर अपने आराध्य कृष्ण से करूणामयी पुकार से कीर्तन करने लगे. भक्त के आर्तनाद को महसूस कर प्रभू जगमोहनजी ने अपने पूरे मंदिर को ही पूर्व से पश्चिम की ओर घुमा दिया जहां उसका परम भक्त बैठा था. जिसका प्रमाण आज भी इस मंदिर में मौजूद हैं. जहां भक्त नामदेव व भगवान कृष्ण(जगमोहनजी) एक ही आधार पर समकक्ष बिराजमान हैं. ऐसा अनोखा दृश्य इतिहास में कहीं नहीं मिलता, जैसा आज के '''"बारसाधाम" (मारवाड़ जंक्शन)''' राजस्थान में है. भगवान जगमोहनजी (ठाकुरजी) ने अपने प्रिय भक्त श्री नामदेव जी को सम्पूर्ण मंदिर सहित घूमकर दर्शन दिए. इस स्थल पर शोध करने वाले छीपा अशोक आर. गहलोत, गुड़ाएन्दला ने इसे सन् 2004 में '''"राजस्थान का पंढ़रपुर"''' '''बारसाधाम''' नाम दिया, जिसे संत ह.भ.प. रामकृष्ण बगाडे जी ने सन् 2005 में अपने कार्यक्रम में इस नाम पर मोहर लगाई. आज ये स्थान '''"राजस्थान का पंढरपुर"''' कहा जाता है. इस बात की पुष्टि इतिहासविद और बारसाधाम के खोजी छीपा श्री अशोक आर गहलोत ने भी समय समय पर छीपा जाति को अवगत कराई है.
 
== नामदेव जी के मत ==