"रामायण": अवतरणों में अंतर

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=== अयोध्याकाण्ड ===
{{main|अयोध्याकाण्ड}}
[[राम]] के [[विवाह]] के कुछ समय पश्चात् राजा [[दशरथ]] ने [[राम]] का [[राज्याभिषेक]] करना चाहा। इस पर [[देवता]] लोगों को चिन्ता हुई कि [[राम]] को राज्य मिल जाने पर [[रावण]] का वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर उन्होंने देवी [[सरस्वती]] से किसी प्रकार के उपाय करने की प्रार्थना की। [[सरस्वती]] नें [[मन्थरा]], जो कि [[कैकेयी]] की दासी थी, की बुद्धि को फेर दिया। [[मन्थरा]] की सलाह से [[कैकेयी]] [[कोपभवन]] में चली गई। [[दशरथ]] जब मनाने आये तो [[कैकेयी]] ने उनसे [[वरदान]]<ref>‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 120-128</ref> मांगे कि [[भरत]] को राजा बनाया जाये और [[राम]] को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये।
[[रावण]] का वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर उन्होंने देवी [[सरस्वती]] से किसी प्रकार के उपाय करने की प्रार्थना की। [[सरस्वती]] नें [[मन्थरा]], जो कि [[कैकेयी]] की दासी थी, की बुद्धि को फेर दिया। [[मन्थरा]] की सलाह से [[कैकेयी]] [[कोपभवन]] में चली गई। [[दशरथ]] जब मनाने आये तो [[कैकेयी]] ने उनसे [[वरदान]]<ref>‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 120-128</ref> मांगे कि [[भरत]] को राजा बनाया जाये और [[राम]] को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये।
 
[[राम]] के साथ [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] भी वन चले गये। [[ऋंगवेरपुर]] में [[निषादराज]] [[गुह]] ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद [[केवट]] ने तीनों को [[गंगा]] नदी के पार उतारा। [[प्रयाग]] पहुँच कर [[राम]] ने [[भरद्वाज]] मुनि से भेंट की। वहाँ से [[राम]] [[यमुना]] स्नान करते हुये [[वाल्मीकि]] ऋषि के आश्रम पहुँचे। [[वाल्मीकि]] से हुई मन्त्रणा के अनुसार [[राम]], [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] [[चित्रकूट]] में निवास करने लगे।