"माण्डूक्योपनिषद": अवतरणों में अंतर

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== संक्षिप्त विवरण ==
इस उपनिषद में कहा गया है कि विश्व में एवं भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालों में तथा इनके परे भी जो नित्य तत्व सर्वत्र व्याप्त है वह ''ऊँकार'' है। यह सब ब्रह्म है और यह आत्मा भी ब्रह्म है।
 
आत्मा चतुष्पाद है अर्थात उसकी अभिव्यक्ति की चार अवस्थाएँ हैं जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय।