"पराशर झील": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:पराशर झील.jpeg|thumb|right|200px|परशर झील और उसमें तैरता भूखण्ड, साथ ही में है पराशर ऋषि का मंदिर।]]
'''पराशर झील''' मंडी की उत्तर दिशा में लगभग ५० किलोमीटर दूर [[हिमाचल प्रदेश]] की प्राकृतिक झीलों में से एक है।
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==स्थानीय पराशर मंदिर==
[[चित्र:पराशर ऋषि की मूर्ति.jpeg|thumb|right|200px|पराशर ऋषि की मूर्ति।]]
मंदिर जाने वाले श्रद्धालु झील से हरी-हरी लंबे फर्ननुमा घास की पत्तियां निकालने हैं। इन्हें बर्रे कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को जर्रे। इन्हें देवता का शेष (फूल) माना जाता है। इन्हें लोग अपने पास श्रद्धापूर्वक संभालकर रखते हैं। मंदिर के अंदर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है। पूजा कक्ष में ऋषि पराशर की पिंडी, विष्णु-शिव व महिषासुर मर्दिनी की पाषाण प्रतिमाएं हैं। पराशर ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और मुनि शक्ति के पुत्र थे। पराशर ऋषि की पाषाण प्रतिमा में गजब का आकर्षण है। इसी प्राचीन प्रतिमा के समक्ष पुजारी आपके हाथ में चावल के कुछ दाने देता है। श्रद्धालु श्रद्धा से आंखें मूंदें मनोकामना करते हैं। फिर आंखें खोल दाने गिनते हैं। यदि दाने तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह हैं तो कामना पूरी होगी और यदि दो, चार, छह, आठ या दस हैं तो नहीं। मनोकामना पूरी पर अनेक श्रद्धालु बकरु (बकरी या बकरा) की बलि मंदिर परिसर के बाहर देते देखे जा सकते हैं। यदि इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती तो एक पुरातन परंपरा के अनुसार पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते हैं। गणेश जी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर है। यह वंदना राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज सैकडों वर्ष बाद भी हो रही है। झील में मछलियां भी हैं जो अपने आप में एक आकर्षण हैं।
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