कन्हैयालाल लिखतालिखते हैहैं कि पुरानी इमारात के मंदिर और हिंदूओं की इबादत गाहैं बहुत हैं जिन का शुमार नहीं हो सकता। छोटे छोटे शिवाले-ओ-ठाकुरद्वारे-ओ-देवी द्वारे बेशुमार हैं। इन में से-ओ-जदीद दोनों किस्म के हैं। मगर सखी अह्द में पुरानी इमारात के मंदिर भी अज सर-ए-नौ नबाए गए थे जिन की इमारात ताज़ा नज़र आती हैं। बाअज़ मंदिर जो उन से नामी गिरामी हैं और ख़ास-ओ-आम वहां जा कर पूजा करते हैं इस क़िस्म में लिखे जाते हैं। (1) मगर याद रहे कि ये कन्हैयालाल ने 1882ई. में अपनी किताब तारीख़ लाहौर में लिखा था। और आज बहुत से मुक़ामात ख़त्म हो चुके हैं।