"फतेहपुर बेरी, असोला": अवतरणों में अंतर

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लेकिन इस गाँव के लडकों पढाई पर भी ध्यान देते हैं। बाउंसर के काम करने के पेहले यह लोग कम से कम १२ कक्षा तक पढाइ तक पूरा करते हैं। कुश्ती इस गांव के लड़कों के खून में है और हर परिवार के इस गांव में कम से कम एक सदस्य को एक पहलवान बन जाता है से है। इन पहलवानों के परिवारों खुश और अपने सदस्यों के पहलवानों होने के साथ संतुष्ट हैं। वे समझते हैं कि इन लड़कों को अवैध रूप से पैसा नहीं कमा रहे हैं और किसी भी सामाजिक विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहे हैं और वे गरिमा के साथ काम करते हैं और यह यह बात उनके परिवार के लोगों को गर्व करता है। इन पहलवानों भारत में [[ संस्कृति]] के लिए योगदान दिए है। उन के अनुसार एक अंगरक्षक या एक बाउंसर होने का यह काम आसान नहीं होता है, लेकिन वे इस तरह कि काम से अच्छी रकम कमाते हैं और उन्के परिवार को पालन करते हैं।
 
[[श्रेणी:दिल्ली के गाँव]]