"बालकृष्ण भट्ट": अवतरणों में अंतर

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| चित्र = Balkrishnabhatt.jpg
| चित्र आकार = 200px
| चित्र शीर्षक = बालकृष्ण भट्ट पोर्ट्रेट
| उपनाम =
| जन्मतारीख़ = [[३ जून]], [[१८४४]]
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| राष्ट्रीयता = [[भारत|भारतीय]]
| भाषा = [[हिन्दी]]
| काल = [[भारतेंदु युग]] <!--is this for her writing period, or for her life period? I'm not sure...-->
| विधा = गद्य
| विषय = [[निबंध]] [[नाटक]]
| आन्दोलन =
| प्रमुख कृति = [[भट्ट निबंधावली]] [[समग्र संग्रह]]
| प्रभाव डालने वाला = भारतेंदु <!--यह लेखक किससे प्रभावित होता है-->
| प्रभावित = <!--यह लेखक किसको प्रभावित करता है-->
| हस्ताक्षर =
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== जीवन परिचय ==
पंडित बाल कृष्ण भट्ट के पिता का नाम पं॰ वेणी प्रसाद था। स्कूल में दसवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भट्ट जी ने घर पर ही [[संस्कृत]] का अध्ययन किया। संस्कृत के अतिरिक्त उन्हें [[हिंदी]], [[अंग्रेज़ी]], [[उर्दू]], [[फारसी]] भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान हो गया। भट्ट जी स्वतंत्र प्रकृति के व्यक्ति थे। उन्होंने व्यापार का कार्य किया तथा वे कुछ समय तक [[कायस्थ पाठशाला]] प्रयाग में [[संस्कृत]] के अध्यापक भी रहे किंतुकिन्तु उनका मन किसी में नहीं रमा। [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र|भारतेंदु]] जी से प्रभावित होकर उन्होंने [[हिंदी]]-[[साहित्य]] सेवा का व्रत ले लिया। भट्ट जी ने '''[[हिन्दी प्रदीप]]''' नामक मासिक पत्र निकाला। इस पत्र के वे स्वयं संपादक थे। उन्होंने इस रस पत्र के द्वारा निरंतर ३२ वर्ष तक हिंदी की सेवा की। [[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा आयोजित [[हिंदी शब्दसागर]] के संपादन में भी उन्होंने [[बाबू श्याम सुंदर दास]] तथा [[रामचन्द्र शुक्ल|शुक्ल जी]] के साथ कार्य किया।
 
उनका जन्म [[प्रयाग]] के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। भट्ट जी की माता अपने पति की अपेक्षा अधिक पढ़ी-लिखी और विदुषी थीं। उनका प्रभाव बालकृष्ण भट्ट जी पर अधिक पड़ा। भट्ट जी मिशन स्कूल में पढ़ते थे। वहाँ के प्रधानाचार्य एक ईसाई पादरी थे। उनसे वाद-विवाद हो जाने के कारण इन्होंने मिशन स्कूल जाना बंद कर दिया। इस प्रकार वह घर पर रह कर ही संस्कृत का अध्ययन करने लगे। वे अपने सिद्धान्तों एवं जीवन-मूल्यों के इतने दृढ़ प्रतिपादक थे कि कालान्तर में इन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण मिशन स्कूल तथा कायस्थ पाठशाला के संस्कृत अध्यापक के पद से त्याग-पत्र देना पड़ा था। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने कुछ समय तक व्यापार भी किया परन्तु उसमें इनकी अधिक रुचि न होने के कारण सफलता नहीं मिल सकी। आपकी अभिरुचि आरंभ से ही साहित्य सेवा में थी। अत: सेवा-वृत्ति को तिलांजलि देकर वे यावज्जीवन हिन्दी साहित्य की सेवा ही करते रहे।
 
=== कार्यक्षेत्र ===
भट्ट जी एक अच्छे और सफल पत्रकार भी थे। हिन्दी प्रचार के लिए उन्होंने संवत्‌ 1933 में प्रयाग में हिन्दी वर्द्धिनी'''हिन्दीवर्द्धिनी''' नामक सभा की स्थापना की। उसकी ओर से एक हिन्दी मासिक पत्र का प्रकाशन भी किया, जिसका नाम था "हिन्दी प्रदीप"। वह बत्तीस वर्ष तक इसके संपादक रहे और इसे नियमित रूप से भली - भाँति चलाते रहे। हिन्दी प्रदीप के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट जी ने दो-तीन अन्य पत्रिकाओं का संपादन भी किया। भट्ट जी भारतेन्दु युग के प्रतिष्ठित निबंधकार थे। अपने निबंधों द्वारा हिन्दी की सेवा करने के लिए उनका नाम सदैव अग्रगण्य रहेगा। उनके निबंध[[निबन्ध]] अधिकतर हिन्दी प्रदीप में प्रकाशित होते थे। उनके निबंध सदा मौलिक और भावना पूर्ण होते थे। वह इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पुस्तकें लिखने के लिए अवकाश ही नहीं मिलता था। अत्यन्त व्यस्त समय होते हुए भी उन्होंने "सौ अजान एक सुजान", "रेल का विकट खेल", "नूतन ब्रह्मचारी", "बाल विवाह" तथा "भाग्य की परख" आदि छोटी-मोटी दस-बारह पुस्तकें लिखीं। वैसे आपने निबंधों के अतिरिक्त कुछ नाटक, कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं।
 
== प्रमुख कृतियाँ ==
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* '''निबंध संग्रह''' ''साहित्य सुमन'' और ''भट्ट निबंधावली''।
 
* '''उपन्यास''' ''नूतन ब्रह्मचारी'' तथा ''सौ अजान एक सुजान''।
 
* '''मौलिक नाटक''' दमयंती, स्वयंवर, बाल-विवाह, चंद्रसेन, रेल का विकट खेल, आदि।
 
* '''अनुवाद''' भट्ट जी ने बंगला तथा संस्कृत के नाटकों के अनुवाद भी किए जिनमें वेणीसंहार, मृच्छकटिक, पद्मावती आदि प्रमुख हैं।
 
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इस शैली की भाषा में उर्दू शब्दों की अधिकता है और वाक्य छोटे-छोटे हैं।
 
==साहित्य सेवा और स्थान- ==
भारतेंदु काल के निबंध-लेखकों में भट्ट जी का सर्वोच्च स्थान है। उन्होंने पत्र, नाटक, काव्य, निबंध, लेखक, उपन्यासकार अनुवादक विभिन्न रूपों में हिंदी की सेवा की और उसे धनी बनाया।
 
साहित्य की दृष्टि से भट्ट जी के निबंध अत्यंत उच्चकोटि के हैं। इस दिशा में उनकी तुलना अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैंब से की जा सकती है।