"मित्र वरुण": अवतरणों में अंतर

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[[वैदिक साहित्य]] में मित्रावरुण को पुरुषों में भ्रातृसदृश स्नेह का प्रतीक दिखाया गया है। मित्र का शाब्दिक अर्थ ही दोस्त होता है। ये अंतरंग मित्रता या दोस्ती के प्रतीक हैं। इन्हें एक शार्क मत्स्य पर सवार दिखाया जाता है और इनके हाथों में त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन दिखाये जाते हैं। कई स्थानों पर इन्हें सात हंसों द्वारा खींचे गये स्वर्ण रथ पर साथ-साथ आरूढ भी दिखाया जाता है। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार इन्हें चंद्रमा के दो रूपों या कलाओं के रूप में दिखाया जाता है, बढ़ता चंद्रमा वरुण एवं घटता चंद्रमा मित्र का प्रतीक दिखाया जाता है। इसी रात्रि में मित्र अपने बीज को वरुण में स्थापित करते हैं।<ref>शतपथ ब्राह्मण, २.४.४.१९</ref> इसी प्रकार वरुण मित्र में अपने बीज की स्थापना [[पूर्णिमा]] की रात्रि को करते हैं।
 
[[भागवत पुराण]] के अनुसार<ref>[[श्रीमद्भाग्वत पुराण]] ६.१८.३-६</ref> वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बतायी गयी हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि [[वाल्मीकि]] की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा [[उर्वशी]] की उपस्थिति में एक घड़े में गिये तब ऋषि [[अगस्त्य]] एवं [[वशिष्ठ]] की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार वरुण की एक उत्पत्ति थी - वारुणी, अर्थात मधु और मद्य की देवी। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है। महाभारत के अनुसा मित्र, याणि [[इंद्र]] के भ्राता [[अर्जुन]] के जन्म के समय आकाश में उपस्थित थे। क्योंकि मित्र एवं वरुण आकाश एवं पृथ्वी पर अपने सागर के जलस्वरूप छाये रहते हैं, इन दोनों देवताओं की पूजा अर्चना [[ज्येष्ठ]] माह में अच्छी वर्षा की कामना से की जाती है। मित्र -वरुण की संयुक्त रूप से [[प्रतिपदा]] एवं [[पूर्णिमा]] के दिन अर्चना की जाती है, जबकि मित्र की अकेले [[शुक्ल पक्ष]] सप्तमी एवं वरुण की [[कृष्ण पक्ष]] [[सप्तमी]] को अर्चना की जाती है।<ref>[http://www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका]- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref>.
 
== सन्दर्भ ==