"काव्य": अवतरणों में अंतर

छो HotCat द्वारा श्रेणी:कविताएँ जोड़ी
No edit summary
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2014}}
 
'''काव्य''', '''कविता''' या '''पद्य''', [[साहित्य]] की वह विधा है जिसमें किसी [[कहानी]] या [[मनोभाव]] को कलात्मक रूप से किसी [[भाषा]] के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। [[भारत]] में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ [[भरतमुनि]] से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।
 
काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वह कला जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। [[रसगंगाधर]] में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। [[साहित्य दर्पण|साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ]] का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है।
 
काव्य- प्रकाश[[काव्यप्रकाश]] में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, [[महाकाव्य]] और [[खंड काव्य।काव्य]]। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न [[क्षत्रिय]] होना चाहिए। उसमें [[शृंगार]], [[वीर रस||वीर]] या [[शान्त रस|शांत]] [[रस|रसों]] में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ [[सर्ग]] होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलंभविप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काब्यकाव्य वह है जो [[अभिनय]] द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दोटप्रकारदो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं।हैं- कथा और आख्यायिका। [[चंपू]], विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है।
 
== परिचय ==
सामान्यत: [[संस्कृत]] के काव्य-साहित्य के दो भेद किये जाते हैं- दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य शब्दों के अतिरिक्त पात्रों की वेशभूषा, भावभंगिमा, आकृति, क्रिया और अभिनय द्वारा दर्शकों के हृदय में रसोन्मेष कराता है। दृश्यकाव्य को 'रूपक' भी कहते हैं क्योंकि उसका रसास्वादन नेत्रों से होता है। श्रव्य काव्य शब्दों द्वारा पाठकों और श्रोताओं के हृदय में रस का संचार करता है। श्रव्यकाव्य में पद्य, गद्य और चम्पू काव्यों का समावेश किया जाता है। गत्यर्थक में पद् धातु से निष्पन ‘पद्य’ शब्द गति की प्रधानता सूचित करता है। अत: पद्यकाव्य में ताल, लय और छन्द की व्यवस्था होती है। पुन: पद्यकाव्य के दो उपभेद किये जाते हैं—महाकाव्य और खण्डकाव्य। खण्डकाव्य को ‘मुक्तकाव्य’ भी कहते हैं। खण्डकाव्य में महाकाव्य के समान जीवन का सम्पूर्ण इतिवृत्त न होकर किसी एक अंश का वर्णन किया जाता है—
: ''खण्डाव्यं भवेत्काव्यस्यैकदेशानुसारि च। – [[साहित्यदर्पण]], ६/३२१
 
कवित्व के साथ-साथ संगीतात्कता की प्रधानता होने से ही इनको हिन्दी में ‘गीतिकाव्य’ भी कहते हैं। ‘गीति’ का अर्थ हृदय की रागात्मक भावना को छन्दोबद्ध रूप में प्रकट करना है। गीति की आत्मा भावातिरेक है। अपनी रागात्मक अनुभूति और कल्पना के कवि वर्ण्यवस्तु को भावात्मक बना देता है। गीतिकाव्य में काव्यशास्त्रीय रूढ़ियों और परम्पराओं से मुक्त होकर वैयक्तिक अनुभव को सरलता से अभिव्यक्त किया जाता है। स्वरूपत: गीतिकाव्य का आकार-प्रकार महाकाव्य से छोटा होता है। इन सब तत्त्वों के सहयोग से संस्कृत मुक्तककाव्य को एक उत्कृष्ट काव्यरूप माना जाता है। मुक्तकाव्य महाकाव्यों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हुए हैं।
Line 16 ⟶ 14:
 
मुक्तककाव्य की परम्परा स्फुट सन्देश रचनाओं के रूप में वैदिक युग से ही प्राप्त होती है। [[ऋग्वेद]] में सरमा नामक कुत्ते को सन्देशवाहक के रूप में भेजने का प्रसंग है। वैदिक मुक्तककाव्य के उदाहरणों में वसिष्ठ और वामदेव के सूक्त, उल्लेखनीय हैं। रामायण, महाभारत और उनके परवर्ती ग्रन्थों में भी इस प्रकार के स्फुट प्रसंग विपुल मात्रा में उपलब्ध होते हैं। कदाचित् महाकवि [[वाल्मीकि]] के शाकोद्गारों में यह भावना गोपित रूप में रही है। पतिवियुक्ता प्रवासिनी [[सीता]] के प्रति प्रेषित श्री राम के संदेशवाहक [[हनुमान]], दुर्योधन के प्रति धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा प्रेषित श्रीकृष्ण और सुन्दरी दयमन्ती के निकट राजा नल द्वारा प्रेषित सन्देशवाहक हंस इसी परम्परा के अन्तर्गत गिने जाने वाले प्रसंग हैं। इस सन्दर्भ में [[भागवत पुराण]] का वेणुगीत विशेष रूप से उद्धरणीय है जिसकी रसविभोर करने वाली भावना छवि संस्कृत मुक्तककाव्यों पर अंकित है।
 
==काव्य का प्रयोजन==
[[राजशेखर]] ने कविचर्या के प्रकरण में बताया है कि [[कवि]] को विद्याओं और उपविद्याओं की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। व्याकरण, कोश, छन्द, और अलंकार - ये चार विद्याएँ हैं। [[६४ कलाएँ]] ही उपविद्याएँ हैं। कवित्व के ८ स्रोत हैं- स्वास्थ्य, प्रतिभा, अभ्यास, भक्ति, विद्वत्कथा, बहुश्रुतता, स्मृतिदृढता और राग।
: ''स्वास्थ्यं प्रतिभाभ्यासो भक्तिर्विद्वत्कथा बहुश्रुतता ।
: ''स्मृतिदाढर्यमनिर्वेदश्च मातरोऽष्टौ कवित्वस्य ॥'' ([[काव्यमीमांसा]])<ref>[https://sa.wikibooks.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE काव्यमीमांसा]</ref>
 
[[मम्मट]] ने काव्य के छः प्रयोजन बताये हैं-
: '' काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
: '' सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे॥
: (काव्य यश और धन के लिये होता है। इससे लोक-व्यवहार की शिक्षा मिलती है। अमंगल दूर हो जाता है। काव्य से परम शान्ति मिलती है और कविता से कान्ता के समान उपदेश ग्रहण करने का अवसर मिलता है।)<ref>[http://www.exoticindiaart.com/book/details/great-sanskrit-poets-and-their-poetry-HAA421/ संस्कृत के महाकवि और काव्य]</ref>
 
== काव्य परिभाषा ==
Line 75 ⟶ 83:
* [http://books.google.co.in/books?id=chTjEUQucWkC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false काव्यशास्त्र के मानदण्ड] (गूगल पुस्तक; डॉ रामनिवास गुप्त)
* [http://books.google.co.in/books?id=wHeW_CuIsXkC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका] (गूगल पुस्तक; लेखक - योगेन्द्र प्रताप सिंह)
* [http://www.kavitakosh.org कविता कोश : हिन्दी कविताओं का खजाना]
* [http://hi.wikibooks.org/wiki/कविता_क्या_है%3F कविता क्या है?] विकिस्रोत पर, लेखक—आचार्य रामचन्द्र शुक्ल।
* [http://raj-bhasha-hindi.blogspot.in/2010/08/2_30.html काव्य प्रयोजन (भाग-2) : संस्कृत के आचार्यों के विचार]
 
[[श्रेणी:साहित्य|काव्य]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/काव्य" से प्राप्त