"ऐतरेय ब्राह्मण": अवतरणों में अंतर

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'''ऐतरेय ब्राह्मण''' [[ऋग्वेद]] की एक शाखा है जिसका केवल "ब्राह्मण" ही उपलब्ध है, संहिता नहीं। ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेदीय ब्राह्मणों में अपनी महत्ता के कारण प्रथम स्थान रखता है। यह "ब्राह्मण" [[अग्निहोत्र|हौत्रकर्म]] से संबद्ध विषयों का बड़ा ही पूर्ण परिचायक है और यही इसका महत्व है। इस "ब्राह्मण" के अन्य अंश भी उपलब्ध होते हैं जो "[[ऐतरेय आरण्यक]]" तथा "[[ऐतरेय उपनिषद्]]" कहलाते हैं।
 
== अध्याय एवं सामग्री ==
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== "ऐतरेय" शब्द की व्याख्या ==
"ऐतरेय" शब्द की व्याख्या एक प्राचीन टीकाकार ने की है – '''इतरा (शूद्रा) का पुत्र''', जिसके कारण इस ब्राह्मण के मूल प्रवर्तक पर हीन जाति का होने का दोष लगाया जाता है, परंतु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। [[अवेस्ता]] का एक प्रख्यात शब्द है – "एथ्रेय" जिसका अर्थ है ऋत्विज्, यज्ञ करानेवाला पुरोहित। विद्वानों की दृष्टि में वैदिक "ऐतरेय" को इस "ऐतरेय" से संबद्ध मानना भाषाशास्त्रीय शैली से नितांत उचित है। फलत: "ऐतरेय" का भी अर्थ है "ऋत्विज"। इस ब्राह्मण में प्रतिपाद्य विषय की आलोचना करने पर इस अर्थ की यथार्थता में संदेह नहीं रहता।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
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[[श्रेणी:वैदिक साहित्य]]
[[श्रेणी:वैदिक सभ्यता]]
[[श्रेणी:चित्र जोड़ें]]