"अग्निपुराण": अवतरणों में अंतर

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'''अग्निपुराण''' [[पुराण|पुराण साहित्य]] में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – [[ब्रह्मा]], [[विष्‍णु]] एवं [[शिव]] तथा [[सूर्य]] की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, [[महाभारत]] के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, [[रामायण]] की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि [[अवतार|अवतारों]] की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।
 
इस पुराण के वक्‍ता भगवान [[अग्नि देव|अग्निदेव]] हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है।
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== अग्नि पुराण का महत्त्व ==
पुराण साहित्य में अग्निपुराण अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। साधारण रीति से पुराण को 'पंचलक्षण' कहते हैं, क्योंकि इसमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (संहार), वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन अवश्यमेव रहता है, चाहे परिमाण में थोड़ा न्यून ही क्यों न हो। परंतु अग्निपुराण इसका अपवाद है। प्राचीन भारत की परा और अपरा विद्याओं का तथा नाना [[भौतिकी|भौतिकशास्त्रों]] का इतना व्यवस्थित वर्णन यहाँ किया गया है कि इसे वर्तमान दृष्टि से हम एक विशाल [[विश्वकोश]] कह सकते हैं।
 
: ''आग्नेय हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः''
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* '''११-१६ ''' : अवतार कथाएँ
* '''१८-२० ''' : वंशों का वर्णन, सृष्टि।
 
* '''२१-१०३ ''' : विविध देवताओं की मूर्तियों का परिमाण, मूर्ति लक्षण, देवता-प्रतिष्ठा, वस्तुपूजा तथा जीर्णोद्धार।
* '''१८-२० ''' : वंशों का वर्णन, सृष्टि।
* '''१०४- १४९ ''' : भुवनकोश (भूमि आदि लोकों का वर्णन), कुछ पवित्र नदियों का माहात्म्य, ज्योतिश्शास्त्र सम्बन्धी विचार, नक्षत्रनिर्णय, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए उच्चारण किए जाने योग्य मन्त्र, चक्र तथा अनेक तान्त्रिक विधान।
 
* '''१५०''' : - मन्वन्तर।
* '''२१-१०३ ''' : विविध देवताओं की मूर्तियों का परिमाण, मूर्ति लक्षण, देवता-प्रतिष्ठा, वस्तुपूजा तथा जीर्णोद्धार।
* '''१५१ - १७४ ''' : वर्णाश्रम धर्म, प्रायश्चित तथा श्राध्दं।
 
* '''१७५ - २०८''' : व्रत की परिभाषा, पुष्पाध्याय (विविध पुष्पों का पूजायोग्यत्व तथा पूजा-अयोगत्व), पुष्प द्वारा पूजा करने का फल।
* '''१०४- १४९ ''' : भुवनकोश (भूमि आदि लोकों का वर्णन), कुछ पवित्र नदियों का माहात्म्य, ज्योतिश्शास्त्र सम्बन्धी विचार, नक्षत्रनिर्णय, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए उच्चारण किए जाने योग्य मन्त्र, चक्र तथा अनेक तान्त्रिक विधान।
* '''२०९ - २१७''' : दान का माहात्म्य, विविध प्रकार के दान, मन्त्र का माहात्म्य, गायत्रीध्यानपद्धति, शिवस्त्रोत्र।
 
* '''२१८ - २४२''' : राज्य सम्बन्धी विचार – राजा के कर्तव्य। अभिषेक विधि – युद्धक्रमा, रणदीक्षा, स्वप्नशुकनादि विचार, दुर्गनिर्माणविधि और दुर्ग के भेद।
* '''१५०''' : - मन्वन्तर।
 
* '''१५१ - १७४ ''' : वर्णाश्रम धर्म, प्रायश्चित तथा श्राध्दं।
 
* '''१७५ - २०८''' : व्रत की परिभाषा, पुष्पाध्याय (विविध पुष्पों का पूजायोग्यत्व तथा पूजा-अयोगत्व), पुष्प द्वारा पूजा करने का फल।
 
* '''२०९ - २१७''' : दान का माहात्म्य, विविध प्रकार के दान, मन्त्र का माहात्म्य, गायत्रीध्यानपद्धति, शिवस्त्रोत्र।
 
* '''२१८ - २४२''' : राज्य सम्बन्धी विचार – राजा के कर्तव्य। अभिषेक विधि – युद्धक्रमा, रणदीक्षा, स्वप्नशुकनादि विचार, दुर्गनिर्माणविधि और दुर्ग के भेद।
 
* '''२४३-२४४''' : पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के लक्षण।
* '''२४५''' : चामर, खड्ग, धनुष के लक्षण।
 
* '''२४५''' : चामर, खड्ग, धनुष के लक्षण।
 
* '''२४६''' : - रत्नपरीक्षा।
* '''२४७''' : - वास्तुलक्षण।
 
* '''२४८''' : - पुष्पादिपूजा के फल।
* '''२४७''' : - वास्तुलक्षण।
* '''२४९-२५२''' : [[धनुर्वेद]]।
 
* '''२५३''' : -२५८ अधिकरण (न्यायालय) के व्यवहार।
* '''२४८''' : - पुष्पादिपूजा के फल।
* '''२५३-२७८''' : चतुर्णां वेदानां मन्त्रप्रयोगैर्जायमानानि विविधानि फलानि, वेदशाखानां विचारः, राज्ञां वंशस्य वर्णनम्।
 
* '''२४९-२५२''' : [[धनुर्वेद]]।
 
* '''२५३''' : -२५८ अधिकरण (न्यायालय) के व्यवहार।
 
* '''२५३-२७८''' : चतुर्णां वेदानां मन्त्रप्रयोगैर्जायमानानि विविधानि फलानि, वेदशाखानां विचारः, राज्ञां वंशस्य वर्णनम्।
 
* '''२७९-२८१''' : [[रसायुर्वेद]] की कुछ प्रक्रियाएँ।
* '''२८२-२२९ ''' : [[वृक्षायुर्वेद]], गजचिकित्सा, गजशान्ति, अश्वशान्ति (हाथी और घोड़ों को कोई भी रोग न हो, इसके लिए उपाय)
 
* '''२९८ -३७२ ''' : विविध देवताओं की मन्त्र-शान्ति-पूजा और देवालय महात्म्य।
* '''२८२-२२९ ''' : [[वृक्षायुर्वेद]], गजचिकित्सा, गजशान्ति, अश्वशान्ति (हाथी और घोड़ों को कोई भी रोग न हो, इसके लिए उपाय)
* '''२९८-३७२ ''' : छन्द शास्त्र आदि।
 
* '''२९८ -३७२ ''' : विविध देवताओं की मन्त्र-शान्ति-पूजा और देवालय महात्म्य।
 
* '''२९८-३७२ ''' : छन्द शास्त्र आदि।
 
* '''३३७-३४७ ''' : साहित्य-रस-अलंकार-काव्यदोष आदि
 
* '''३४८- ''' : एकाक्षरी कोश।
 
* '''३४९-३५९ ''' : व्याकरण सम्बन्धी विविध विषय।
* '''४६०-३६७ ''' : पर्याय शब्दकोश।
 
* '''३६८-३६९ ''' : प्रलय का निरुपण।
* '''४६०-३६७ ''' : पर्याय शब्दकोश।
* '''३७०- ''' : शारीरकं (शरीर और उसके अंगों का [[आयुर्वेद]]सम्मत निरुपण)।
 
* '''३६८-३६९ ''' : प्रलय का निरुपण।
 
* '''३७०- ''' : शारीरकं (शरीर और उसके अंगों का [[आयुर्वेद]]सम्मत निरुपण)।
 
* '''३७१- ''' : नरक निरुपण।
* '''३७२-३७६ ''' : योगशास्त्र प्रतिपाद्य विचार।
 
* '''३७७-३८० ''' : वेदान्तज्ञान।
* '''३७२-३७६ ''' : योगशास्त्र प्रतिपाद्य विचार।
 
* '''३७७-३८० ''' : वेदान्तज्ञान।
 
* '''३८१- ''' : गीतासार।
 
* '''३८२- ''' : यमगीता।
 
* '''३८३- ''' : अग्निपुराण का महात्म्य।
 
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* [http://veda-vidya.com/puran.php वेद-विद्या_डॉट_कॉम]
* [https://groups.google.com/forum/#!topic/bvparishat/g3iB9akz9PY अग्निपुराण का काव्यादिलक्षणं सर्ग]
 
 
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[[श्रेणी:पुराण]]
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