"अग्रिम जमानत": अवतरणों में अंतर

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'''अग्रिम जमानत''' (Anticipatory bail) न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को, उसके गिरफ्तार होने के पहले ही, जमानत दे दिया जाता है (अर्थात आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।)।
 
[[भारत]] के [[दण्डविधि|आपराधिक कानून]] के अन्तर्गत, गैर जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका मे कोई भी व्यक्ति '''अग्रिम जमानत''' का आवेदन कर सकता है। अदालत सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकती है। यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है।<ref>[http://www.jagran.com/uttar-pradesh/kanpur-city-11103745.html फर्जी मुकदमों पर लगाम लगाएगी अग्रिम जमानत]</ref> अग्रिम जमानत का यह प्रावधान [[दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (भारत)| भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता]] की धारा ४३८ में दिया गया है।<ref>AIR 1980 SC 1632</ref> [[भारतीय विधि आयोग]] ने अपने ४१वें प्रतिवेदन में इस प्राविधान को दण्ड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने की अनुशंसा (सिफारिस) की थी।
 
अग्रिम जमानत का आवेदन करने पर अभियोग लगाने वाले को इस प्रकार की जमानत की अर्जी के बारे में सूचना दी जाती है ताकि वह चाहे तो न्यायालय में इस अग्रिम जमानत का विरोध कर सके।
 
==सन्दर्भ==
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[[श्रेणी:भारतीय विधि]]
[[श्रेणी:चित्र जोड़ें]]