"सत्यवती": अवतरणों में अंतर

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== वेदव्यास का जन्म ==
 
एक बार [[पाराशर]] मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।है।मैं कुमारी हूँ। मेरे पिता क्या कहेंगे" तब पाराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतनापाराशर कहने करफिरसे उन्होंनेमांग अपनेकी योगबलतो सेसत्यवती चारोंबोली ओरकी" घनेमेरे कुहरेशरीर कासे जालमछली रचकी दियादुर्गन्ध औरनिकलती सत्यवतीहै"।तब के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा," तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया ताकी कोई और उन्हें उस हाल में ना देखे। अब सत्यवती और महर्षि नदी के किनारे नग्न होकर सो गए, एबं शारीरिक संबंध बनाने लगे। फिर सहवास के बाद पारासर संतान उत्पन्न करने के लिए अपना वीर्य डाला और चले गए सत्यवती को गर्ववती बनाकर।
 
समय आने पर सत्यवती गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।