"ययाति": अवतरणों में अंतर
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[[File:Emperor Yayathi.png|thumb|राजा ययाति की छाया अनुकृति]]
'''ययाति''', [[इक्ष्वाकु]] वंश के राजा [[नहुष]] के छः पुत्रों [[याति]], '''ययाति''', [[सयाति]], [[अयाति]], [[वियाति]] तथा [[कृति]] में से एक थे। याति राज्य, अर्थ आदि से विरक्त रहते थे इसलिये राजा [[नहुष]] ने अपने द्वितीय पुत्र ययाति का राज्यभिषके करवा दिया। ययाति का विवाह [[शुक्राचार्य]] की पुत्री [[देवयानी]] के साथ हुआ।
देवयानी के साथ उनकी सखी शर्मिष्ठा भी ययाति के भवन में रहने लगे। ययाति ने शुक्राचार्य से प्रतिज्ञा की थी की वे देवयानी भिन्न किसी ओर नारी से शारीरिक सम्बन्ध नही बनाएंगे। एकबार शर्मिष्ठा ने कामुक होकर ययाति को मैथुन प्रस्ताव दिया। शर्मिष्ठा की सौंदर्य से मोहित ययाति ने उसका सम्भोग किया। इस तरह देवयानी से छुपाकर शर्मिष्ठा एबं ययाति ने तीन वर्ष बीता दिए। उनके गर्भ से तीन पुत्रलाभ करने के बाद जब देवयानी को यह पता चला तो उसने शुक्र को सब बता दिया। शुक्र ने ययाति को वचनभंग के कारन शुक्रहीन बृद्ध होनेका श्राप दिया।
ययाति की दो पत्नियाँ थीं। [[शर्मिष्ठा]] के तीन और [[देवयानी]] के दो पुत्र हुए। ययाति ने अपनी वृद्धावस्था अपने पुत्रों को देकर उनका यौवन प्राप्त करना चाहा, पर पुरू को छोड़कर और कोई पुत्र इस पर सहमत नहीं हुआ। पुत्रों में पुरू सबसे छोटा था, पर पिता ने इसी को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया और स्वयं एक सहस्र वर्ष तक युवा रहकर शारीरिक सुख भोगते रहे। तदनंतर पुरू को बुलाकर ययाति ने कहा - 'इतने दिनों तक सुख भोगने पर भी मुझे तृप्ति नहीं हुई। तुम अपना यौवन लो, मैं अब वाणप्रस्थ आश्रम में रहकर तपस्या करूँगा।' फिर घोर तपस्या करके ययाति [[स्वर्ग]] पहुँचे, परंतु थोड़े ही दिनों बाद [[इंद्र]] के शाप से स्वर्गभ्रष्ट हो गए ([[महाभारत]], आदिपर्व, ८१-८८)। अंतरिक्ष पथ से पृथ्वी को लौटते समय इन्हें अपने दौहित्र, अष्ट, शिवि आदि मिले और इनकी विपत्ति देखकर सभी ने अपने अपने पुण्य के बल से इन्हें फिर स्वर्ग लौटा दिया। इन लोगों की सहायता से ही ययाति को अंत में मुक्ति प्राप्त हुई।
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